
हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा इंजीनियर या फिर डॉक्टर बनें। इसके लिए वो चाहते हैं कि उनका बच्चा उनके पास रह कर नहीं, बल्कि राजस्थान के कोटा शहर में जाकर इंजीनियरिंग और एमबीबीएस की तैयारी करे। मां-बाप मोटा पैसा खर्च कर अपना बच्चे का एडमिशन कोटा के किसी जाने माने कोचिंग संस्थान में करवा देते हैं। यहां एडमिशन के बाद बच्चे के उपर शुरु होता है पढ़ाई का दवाब। बच्चे 16-16 घंटे की पढ़ाई करते हैं। सफलता हाथ लगती है तो मेहनत काम आ जाती है और सफलता हाथ नहीं लगी तो अब तो उसका परिणाम आने लगे हैं, वो बेहद खौफनाक है।
कोविड के बाद आत्महत्या मामले में 62% की बढ़ोतरी
हाल ही में आपने ये ख़बर जरुर पढ़ी होगा या न्यूज चैनल में देखा होगा कि 6 घंटे में 2 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। आखिर क्या वजह है कि बच्चे लगातार आत्महत्या कर रहे हैं? आपको ये जानकर बेहद हैरानी होगी कि कोटा में बच्चे इस तरह से दवाब में रहते हैं कि कोरोना काल के बाद से कोटा में छात्रों के बीच आत्महत्या के मामले में करीब 63% बढ़ी है। इसी साल 2023 में अबतक करीब 22 छात्रों ने आत्महत्या कर ली है, जो अबतक का सबसे बड़ा मामला है। वहीं 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी तो वहीं 2021 में 9 छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी। इन तीनों सालों के आंकड़े पर गौर करे तो मामले में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
छात्रों पर है किस तरह का दवाब?
दरअसल, कोटा पढ़ने के लिए जितने भी छात्र पहुंचते हैं, वो किसी ना किसी तरह के दवाब मेमं रहते हैं। जरुरी नहीं है कि वो दवाब परिवार का हो। इसके अलावा भी कई तरह के दवाब छात्रों के उपर रहते हैं। एक सर्वे के मुताबिक करीब 34% छात्र ये मानते हैं कि पढ़ाई के दवाब कोटा में ज्यादा है। क्योंकि यहां छात्रों को 24 घंटे में से करीब 16 घंटे पढ़ाई करनी पड़ती हैय़ बच्चों का जो रुटीन सुबह 6 बजे से शुरु होता है, वो करीब करीब रात के 1 बजे तक चलता है। इन समय के दौरान छात्रों को अपना मूड फ्रेश करने के लिए मात्र आधे घंटे से लेकर 45 मिनट तक का समय मिलता है। उपर से कोचिंग सेंटर की तरफ से समय समय पर लिया जाने वाली टेस्ट परीक्षा भी छात्रों के उपर दवाब का एक बड़ा कारण है।
छात्र क्यों कर लेते हैं आत्महत्या?
छात्रों के बीच आत्महत्या के जितने मामले अभी सामने आ रहे हैं, उनका बड़ा कारण यही रहा है कि छात्र पढ़ाई का दवाब झेल नहीं पा रहे हैं। ज्यादातर बच्चे इस कारण से आत्महत्या कर रहे हैं कि उन्हें डर है कि उनका रिजल्ट ठीक नहीं हुआ या फिर ठी नहीं होगा। परिवार का सामना वो किस तरह से करेंगे? करीब 48% छात्रों ने इस बात को माना है। वहीं 60% छात्र ये मानते हैं कि वो अपने दिल की बात किसी से भी शेयर नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें इस बात का डर सताता है कि कोई उनकी बेइज्जती ना करे। मात्र 10% छात्र ही अपनी परेशानी या दवाब की बात अपने माता – पिता से करते हैं और मात्र 1% छात्र ही ऐसे हैं जो इसकी चर्चा अपने शिक्षक से करते हैं। छात्रों के बीच आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण बन रहा है, छात्रों के अंदर ये सोच की लोग क्या कहेंगे? माता-पिता क्या कहेंगे? ऐसे दवाब से बच्चे अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और अंत में वो अपनी ज़िंदगी खत्म कर लेते हैं।