
नई दिल्ली: मंगलवार से नए संसद की कार्रवाई शुरु हो गई है और इसकी शुरुआत लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश कर किया गया। इस बिल को सरकार महिलाओं के लिए एक अहम पड़ाव के तौर पर देख रही है। हैरान करने वाली बात तो ये है कि ये बिल पिछले 27 साल से संसद में लंबित था, जिसे मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया, जहां इसे पास कर दिया गया। इस बिल में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। सरकार की तरफ से कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया। इस बिल का नाम “नारी शक्ति वंदन बिल” रखा गया है।
महिला आरक्षण बिल में क्या है प्रावधान?
महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। फिलहाल इसे लोकसभा पेश किया गया, जहां ये बिल ध्वनि मत से पास कर दिया गया और अगर ये बिल राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो ये कानून बन जाएगा, जो अगले 15 साल के लिए मान्य होगा। इस बिल के तहत लोकसभा की 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। वही विधानसभा में भी 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। दिल्ली विधानसभा की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। वहीं एससी की 84 रिजर्व सीटों में से 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए होंगी। एसटी की 47 रिजर्व सीटों में भी 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए होंगी।
क्या है महिला आरक्षण बिल का फॉर्मूला?
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि लोकसभा में कुल रिजर्व सीटों की संख्या 543 है, जिसका 33% 181 सीट होता है। इसका मतलब ये है कि 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लोकसभा में एससी की 84 सीटें रिजर्व हैं, इस बिल के पास होने के बाद उसमें से 28 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। वहीं बात एसटी की करें तो 47 सीटे उनके लिए रिजर्व हैं तो इसमें से अब महिलाओं के लिए 15 सीटें रिजर्व रहेंगी।
पिछले 27 सालों से लंबित था बिल?
महिला आरक्षण बिल जिसे नारी शक्ति वंदन बिल नाम दिया गया है, ये पिछले 27 सालो से संसद में लंबित पड़ा था। हर चुनावी मुद्दे में इसका जिक्र जरुर आता रहा, लेकिन इस पर आजतक कानून नहीं बन पाया। सबसे पहले 1996 में इस बिल को पेश किया गया था। उस वक्त देश में देवगौड़ा सरकार थी। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 1998, 1999 और 2002 में पेश किया गया था। लेकिन पास नहीं हो पाया। यहां तक कि 1998 में आरजेडी सांसद ने इस बिल की कॉपी को लाल कृष्ण आडवाणी के हाथों से लेकर फाड़ दिया गया था। फिर 2008 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे राज्.सभा में पेश किया गया। तभी इसे ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा गया और फिर 2010 में इसे राज्यसभा में पेश कर दिया गया लेकिन इसे पहले लोकसभा में पेश नहीं किया गया।