
नई दिल्ली: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है और इसके समाप्त होने के कुछ समय बाद ही लोकसभा चुनाव की भी घोषणा हो जाएगा। ऐसे में देश की सभी राजनीतिक पार्टियों का चुनावी तैयारियों में जुटना लाजमी है। राजनीतिक पार्टियों की बयानबाजी से तो ऐसा ही लगता है कि चुनावी जंग राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी के बीच है। कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बने। लेकिन कांग्रेस की ये मंशा पुरी होगी या नहीं ये तो चुनाव के बाद पता चलेगा लेकिन देश में चुनाव को लेकर जो अलग अलग सर्वे हुए हैं, उससे तो ऐसा लगता नहीं है कि कांग्रेस या फिर इंडिया गठबंधन 2024 में भी सत्ता पर आ पाएगी।
बात कांग्रेस की करें तो इस समय कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी द्वारा दिए गए नए नारे “जितनी आबादी, उतना हक़” के दम पर चुनावी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है। यहां हैरान करने की बात तो ये है कि आजादी के बाद से कांग्रेस के इतिहास में कभी पिछड़ी जातियों के लिए नहीं सोचा लेकिन अब अचानक से हिमायती बन गई और अब इसको लेकर सरकार को भी घेरने लगी है। ना को राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी को जाति की याद आई और ना ही कभी राहुल गांधी को लेकिन अब अचानक से कांग्रेस कास्ट बेस्ड राजनीति पर उतर आई है और देशभर में जातीगत जनगणना की वकालत कर रही है। जातिगत राजनीति को देख कर तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब छोटी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को भी पीछे छोड़ती नजर आ रही है।
अब ऐसे में कांग्रेस भुल गई है कि कांग्रेस के चलते ही देश भर में जाति आधारित पार्टियां बनीं हैं। कांग्रेस की नीतियों और बगावत के कारण ही छोटी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का गठन हुआ है। अब चाहे 1960 और 1970 के दशक में लोहियावादी राजनीति हो या फिर 1980 और 1990 के दौर में मंडल पर आधारित पार्टियों का उदय हो। अगर इन सभी पार्टियों के इतिहास को देखें तो इसके केंन्द्र में कांग्रेस के साथ बगावत ही है। कारण भी ये रहा था कि जब ओबीसी मुद्दे पर मंडल आयोग और काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट आई तो कांग्रेस की सरकार ने उन फाइलों को धूल फांकने के लिए छोड़ दिया। फिर नतीजा वही रहा…बगावत।
लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस कितना भी ओबीसी का राग अलाप ले लेकिन आने वाले चुनाव में कांग्रेस को फायदा नहीं मिलने वाला। क्योंकि पिछली चुनावी आंकड़ें तो कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर की बात करें तो 2009 के चुनाव के मुकाबले ओबीसी बोट शेयर काफी घट गया। वही क्षेत्रीय दलो को भी काफी नुकसान पहुंचा था। लेकिन बीजेपी और एनडीए को इसका जबरदस्त फायदा हुआ था। उनका वोट शेयर करीब करीब दो गुना हो गया था। अब अगर इन आंकड़ों को देख लें तो आपको इस बात का अंदाजा बहुत आसानी से लग जाएगा कि कांग्रेस का ओबीसी राग राहुल गांधी को 2024 में प्रधानमंत्री नहीं बना पाएगी। प्रधानमंत्री बनाना तो दूर, कांग्रेस समर्थित विपक्ष गठबंधन इंडिया सत्ता में भी नहीं आ पाएगी।