
नई दिल्ली: इसी साल जुलाई के महीने में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू (Draupdi Murmu) को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के सब-क्लासिफिकेशन के मामले में जस्टिस रोहिणी आयोग (Justic Rohini Aayog) द्वारा तैयार की गई थी। अब ख़बर ये निकल कर सामने आ रही है कि केन्द्र सरकार इस रिपोर्ट पर विचार कर सकती है। अगर मोदी सरकार जस्टिस रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला करती है तो आने वाले लोकसभा चुनाव में ये मुख्य रुप से ओबीसी आउटरीच दिशा में बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। क्योंकि ये मुद्दा देश के कुल वोटर्स में से 40 फीसदी से ज्यादा वोटर्स, जो ओबीसी हैं, उनके भविष्य से जुड़ा है।
क्या है ये रिपोर्ट?
दरअसल 2017 में केन्द्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड चीफ जस्टिस रोहिणी की अगुआई में एक आयोग का गठन किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य सभी अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की पहचान करना और उन्हें सब-कैटेगरी में क्लासिफाइड करना था। आयोग ने सर्वे कर जो रिपोर्ट तैयार किया है, उसे दो भागों में बांटा गया है। इस रिपोर्ट का पहला हिस्सा ओबीसी आरक्षण कोटा के न्यायसंगत और समावेशी वितरण से जुड़ा है, तो रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा देश में मौजूदा लिस्टेड 2,633 पिछड़ी जातियों की पहचान, जनसंख्या में उनके प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन और अबतक आरक्षण नीतियों से उन्हें मिले फायदों से जुड़े आंकड़े हैं।
लागू होने पर क्या होंगे फायदे?
अगर इस रिपोर्ट में दर्ज सिफारिशों को केन्द्र सरकार लागू कर देती है तो पिछले 40 साल से चली आ रही ओबीसी आरक्षण नीति के वैचारिक ढांचे और इसके व्यावहारिक कार्यान्वयन में एक बदलाव आने की संभावना है। इस रिपोर्ट में पैनल ने जिक्र किया है कि विभिन्न जातियों और उप-जातियों को वर्गीकृत करने के पीछे का मकसद ओबीसी के बीच एक नया पदानुक्रम बनाना नहीं है, बल्कि सभी को समान अवसर पर रखकर सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है। मूल रुप से ये सभी जातियों और उपजातियों की समानता पर केन्द्रित है।