
नई दिल्ली: रूस के कज़ान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता ने दोनों देशों के बीच पांच साल से जारी तनावपूर्ण रिश्तों में एक नई दिशा दी। यह बैठक उन दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण रही, जो 2020 से पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से एक तनावपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे थे।
गलवान घाटी का संघर्ष और इसके बाद का तनाव
साल 2020 की गलवान घाटी की घटना में भारतीय सेना के 20 सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि चीन की सेना को भी कई जवानों की हानि उठानी पड़ी थी। यह घटना दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का एक भयानक अध्याय था, जिसके बाद से द्विपक्षीय वार्ताएं और संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती भी बढ़ गई थी, और यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बना रहा।
वर्ष 2021 में एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच लगभग 50,000 से अधिक सैनिक लद्दाख और तिब्बत की सीमा पर तैनात थे। 2020 के बाद से सीमा पर लगातार झड़पें और तनाव बना रहा, लेकिन दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय सैन्य और राजनयिक वार्ताएं भी होती रहीं।
वार्ता का मुख्य बिंदु: सीमा पर शांति और स्थिरता
कज़ान में हुई इस वार्ता में, मोदी और शी जिनपिंग ने सीमा पर शांति बनाए रखने की प्राथमिकता पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने इस बात को स्पष्ट किया कि “आपसी विश्वास, आपसी सम्मान, और आपसी संवेदनशीलता” उनके संबंधों की नींव होनी चाहिए।
बैठक में सीमा पर तनाव कम करने के उपायों पर विशेष जोर दिया गया और इसे भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया। इसके अतिरिक्त, सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए एक समझौता भी हुआ, जिसे दोनों नेताओं ने स्वागत किया।
वार्ता के व्यापक संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह बैठक 2024 में एशियाई भू-राजनीति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जहां भारत और चीन एशिया के दो बड़े शक्तिशाली देश हैं, वहीं इनके संबंधों पर विश्व की निगाहें टिकी रहती हैं। शी जिनपिंग ने बातचीत के दौरान यह भी कहा कि “दोनों देशों के लोग और अंतर्राष्ट्रीय जगत हमारी मुलाकात को बहुत ग़ौर से देख रहे हैं।”
द्विपक्षीय वार्ता के परिणाम
इस बैठक के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि भारत और चीन के बीच न केवल सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे, बल्कि आपसी सहयोग और संवाद को भी बढ़ावा मिलेगा। वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक चैनलों को और अधिक सक्रिय करने पर सहमति बनी है, ताकि सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति से बचा जा सके।
इस वार्ता के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में भी सुधार की संभावना जताई जा रही है। भारत और चीन के बीच 2022 में व्यापार 135.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था, जिसमें भारत का व्यापार घाटा 101 बिलियन डॉलर था। यह व्यापारिक असंतुलन दोनों देशों के बीच एक अन्य प्रमुख मुद्दा है, जिसे सुलझाने के लिए भी दोनों पक्ष बातचीत कर सकते हैं।
इस तरह, पांच साल के अंतराल के बाद यह वार्ता केवल सीमा विवाद के समाधान की दिशा में एक कदम नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को स्थिर करने में भी सहायक हो सकती है। लेकिन यहां देखने वाली बात ये भी होगी कि क्या इससे दोनों देशों के संबंधों में हमेशा के लिए सुधार आता है या फिर ये कुछ पल के लिए ही है?