सुप्रीम कोर्ट में लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय द्वारा वक्फ अधिनियम 1995 (wakf Act 1995) के खिलाफ याचिका दायर की गई। अदालत ने इसे हस्तक्षेप अर्जी मानते हुए सुनवाई की मंज़ूरी दी।
नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। यह याचिका लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय द्वारा दायर की गई है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि अधिनियम के कई प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करते हैं, और यह मुस्लिम समुदाय को गैर-मुस्लिमों व सरकारी संपत्तियों पर अनुचित दावा करने की अनुमति देते हैं।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि लगभग तीन दशकों पुराने कानून को अब 2025 में क्यों चुनौती दी जा रही है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर भी अब सुनवाई कर रहा है, इसलिए यह याचिका भी वैध रूप से विचारणीय है। मुख्य न्यायाधीश ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि इस याचिका को “हस्तक्षेप अर्जी” के रूप में दर्ज किया जाएगा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अदालत इस मामले को प्रारंभिक स्तर पर गंभीरता से ले रही है।
याचिका के मुख्य बिंदु:
- अधिनियम में वक्फ बोर्ड के सभी सदस्य मुस्लिम होते हैं, जिनमें दो महिलाओं का होना अनिवार्य है।
- यह स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकारी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है।
- वक्फ संपत्ति की पहचान और प्रबंधन का अधिकार वक्फ बोर्ड के पास है, जिससे निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
- वक्फ सर्वेक्षण राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों के माध्यम से होता है, जिससे संभावित पक्षपात की आशंका बनी रहती है।
- सुन्नी और शिया समुदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड की व्यवस्था है, लेकिन आय में हिस्सेदारी को लेकर असमानता के आरोप हैं।
वक्फ बोर्ड का इतिहास:
ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1913 में वक्फ बोर्ड की औपचारिक शुरुआत हुई थी। 1923 में पहला वक्फ अधिनियम लाया गया और 1954 में स्वतंत्र भारत में इसे पहली बार संसद द्वारा पारित किया गया। वर्ष 1995 में एक संशोधित व व्यापक वक्फ अधिनियम लाया गया, जिसने वक्फ बोर्ड को अधिक शक्तियां प्रदान कीं। आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने को लेकर सुनवाई हुई थी, जिसका निर्णय सुरक्षित रखा गया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या अदालत इस याचिका को व्यापक सुनवाई के लिए स्वीकार करती है और क्या वक्फ कानून की समीक्षा की जाएगी।