वोटर ID और आधार लिंकिंग: पारदर्शिता की पहल या निजता का संकट?
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मार्च 18, 2025 को चुनाव आयोग, गृह मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार मंत्रालय और UIDAI के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में वोटर ID और आधार को लिंक करने की दिशा में सहमति बनी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की बात कही जा रही है।

क्या है चुनाव आयोग का तर्क?

चुनाव आयोग और सरकार ने इस प्रक्रिया को चार प्रमुख कारणों से आवश्यक बताया है:

  1. डुप्लीकेसी पर रोक: एक व्यक्ति के कई स्थानों पर वोट डालने की समस्या से निजात मिलेगी।
  2. इंटरनेट आधारित मतदान: भविष्य में ऑनलाइन वोटिंग की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए यह कदम जरूरी है।
  3. शहरी पलायन करने वालों के लिए राहत: प्रवासी नागरिक अपने गृह राज्य से दूर रहकर भी मतदान कर सकेंगे।
  4. प्रॉक्सी वोटिंग: मतदाता के सत्यापन के लिए आधार को अनिवार्य किया जा सकता है।

चुनाव आयोग का मानना है कि इस प्रक्रिया से चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता बढ़ेगी।

कानूनी अड़चनें और सुप्रीम कोर्ट का रुख

पहले भी चुनाव आयोग ने 2015 और 2022 में इस प्रक्रिया को लागू करने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निजता और संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी थी। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आधार को किसी भी सरकारी सेवा के लिए अनिवार्य नहीं किया जा सकता, सिवाय सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के।

विपक्ष का रुख

विपक्षी दलों का मानना है कि यह कदम नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है। कांग्रेस और INDIA गठबंधन के नेताओं ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इसे संवैधानिक अधिकारों का हनन बताया है।

डेटा सुरक्षा का सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि आधार डेटा की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं। 2015 में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 55 लाख लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हट गए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वोटर ID और आधार को लिंक करने से लोगों का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होगा? चुनाव आयोग इस बार नए कानूनी ढांचे के तहत आधार को अनिवार्य बनाने पर विचार कर रहा है। 30 अप्रैल 2025 तक सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से सुझाव मांगे गए हैं। यदि यह प्रस्ताव पारित होता है, तो भारतीय चुनावी प्रणाली में यह एक बड़ा बदलाव होगा।

हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएगा या फिर निजता और संवैधानिक अधिकारों पर संकट खड़ा करेगा।

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