
शारदीय नवरात्र का हिन्दू धर्म में कितना महत्व है, ये तो बताने की जरुरत नहीं है। इन नौ दिनों में दूर्गा जी की विशेष पूजा की जाती है, जिसका आरंभ प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना से हो जाता है। इस बार 3 अक्तूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है। हिन्दू धर्म में मान्यता के अनुसार माना जाता है कि मां दूर्गा हर बार अलग अलग सवारी पर आती हैं, जिससे भविष्य कैसा होगा, इसका संकेत मिलता है। इसका वर्णन देवीभागवतपुराण में मिलता है।
पालकी पर सवार होकर आ रही हैं मां दूर्गा
इस साल मां दूर्गा पालकी पर सवार होकर आ रही हैं। माता का पालकी पर सवार होकर आना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। मान्यता है कि जब मां दूर्गा पालकी पर सवार हो कर आती हैं तो ये अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं होता है। वहीं लोगों में नाराजगी और असंतोष बढ़ता है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं भी आती हैं। इतना ही नहीं, राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो सत्ता पक्ष को परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
क्या कहता है देवीभागवतपुराण?
देवीभागवतपुराण में एक श्लोक के माध्यम से माता की सवारी के बारे में पता चलता है। ये श्लोक है: शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ इस श्लोक से इस बात का पता चलता है कि अगर नवरात्रि सोमवार या फिर रविवार से शुरु हो रहा है तो माता की सवारी हाथी है और अगर शनिवार या मंगलवार से नवरात्रि की शुरुआत होती है तो मां दूर्गा घोड़े पर सवार होकर आती हैं। वहीं अगर नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार या फिर शुक्रवार से होती है मां दूर्गा पालकी पर सवार होकर आती हैं। वुधवार से अगर नवरात्रि की शुरुआत होती है तो वो नांव पर सवार होकर आती हैं।
आपको बता दें कि शारदीय नवरात्र से एक दिन पहले यानी 2 अक्तूबर को सूर्य ग्रहण भी है। ये सूर्य ग्रहण साल का आखिरी सूर्य ग्रहण है। इससे पहले 18 सितंबर को भी सूर्य ग्रहण लगा था। ज्योतिष शास्त्र की माने तो 15 दिन के अंदर दो सूर्य ग्रहण का लगना शुभ संकेत नहीं माना गया है।