Tej Pratap Yadav announces his candidacy: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले तेज प्रताप यादव ने महुआ सीट से दोबारा चुनाव लड़ने की घोषणा की। उन्होंने विधायक मुकेश रौशन को ‘बहुरूपिया’ बताया और खुद को लालू यादव की विरासत का असली उत्तराधिकारी बताया।
महुआ (बिहार): बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के बीच प्रदेश की सियासत गरमाती जा रही है। इसी क्रम में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने वैशाली जिले की महुआ विधानसभा सीट से दोबारा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। गुरुवार को महुआ में आयोजित एक जनसंवाद कार्यक्रम में तेज प्रताप ने अपने चिर-परिचित अंदाज में न सिर्फ विपक्षियों पर बल्कि महागठबंधन के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन पर भी तीखा हमला बोला।
अपनी जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान तेजप्रताप यादव ने रौशन को ‘बहुरूपिया’ कहकर निशाना साधा और कहा, “जब-जब मैं महुआ आता हूं, तब-तब यहां का बहुरूपिया विधायक रोने लगता है। इस बार अगर रोए, तो आप लोग झुनझुना थमा दीजिएगा।” उनके इस बयान पर जनसभा में मौजूद लोगों ने जमकर तालियां बजाईं।
तेज प्रताप यादव ने अपने संबोधन में यह दावा भी किया कि उन्होंने महुआ के लिए कई विकास कार्य कराए हैं, जिनमें एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना प्रमुख है। उन्होंने कहा, “मेरी रगों में लालू जी का खून है। मुझे जिताना मतलब लालू जी को जिताना है।” उन्होंने अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव पर तंज कसते हुए कहा, “हमने उन्हें अर्जुन माना था, लेकिन जरूरत पड़ी तो मुरली बजाकर उन्हें कृष्ण भी दिखा देंगे।”
2015 में तेज प्रताप यादव ने महुआ सीट से पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था, जबकि 2020 में उन्होंने समस्तीपुर की हसनपुर सीट से चुनाव लड़ा था। अब 2025 के चुनाव में वे फिर से महुआ लौटने की तैयारी में हैं, लेकिन इस बार आरजेडी के टिकट पर नहीं बल्कि अपनी नई राजनीतिक पहचान ‘टीम तेज प्रताप’ के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरेंगे। खास बात तो ये है कि एक अहम प्रतीकात्मक बदलाव में तेज प्रताप ने आरजेडी की पारंपरिक हरी टोपी को त्यागकर अब पीली टोपी धारण की है, जो उनकी नई राजनीतिक सोच और आत्मनिर्भर राह की ओर संकेत करती है।
महुआ सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा। एक ओर तेज प्रताप अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता और ‘लालू फैक्टर’ पर भरोसा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मौजूदा विधायक मुकेश रौशन को राजद संगठन और महागठबंधन का समर्थन प्राप्त है। बिहार की राजनीति में यह टकराव न सिर्फ दो नेताओं के बीच है, बल्कि यह पारंपरिक विरासत बनाम नई पहचान की भी जंग बनती जा रही है।