दिलीप घोष की अनुपस्थिति पर उठे सवाल, क्या बंगाल बीजेपी में बदल रहा है नेतृत्व?

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बीजेपी नेता दिलीप घोष (Dilip Ghosh) की हालिया रैलियों और बैठकों से अनुपस्थिति ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। क्या बंगाल में पार्टी नेतृत्व से उनका मोहभंग हो रहा है या यह कोई रणनीतिक दूरी है?

कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी (BJP) की बंगाल इकाई में इन दिनों हलचल तेज है। इसका एक बड़ा कारण है – पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की रहस्यमयी अनुपस्थिति। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे शीर्ष नेता बंगाल में रैलियों और बैठकों में सक्रिय नजर आए, वहीं दिलीप घोष का इन कार्यक्रमों से दूर रहना न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल से 18 सीटें जीतकर राज्य की राजनीति में एक मजबूत दस्तक दी थी। इसके पीछे कई नेताओं की मेहनत रही, लेकिन दिलीप घोष का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा। उन्होंने न केवल संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत किया, बल्कि संघ की पृष्ठभूमि से आए होने के कारण उनका विचारधारा से गहरा जुड़ाव भी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई। अब, जब पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत है, दिलीप घोष की निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है। हाल ही में अलीपुरद्वार में हुई प्रधानमंत्री मोदी की रैली हो या गृह मंत्री अमित शाह की बंगाल यात्रा — दोनों ही मौकों पर घोष की गैरमौजूदगी ने सभी का ध्यान खींचा। जब उनसे इस दूरी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा, “पार्टी में मेरे पास कोई औपचारिक पद नहीं है, इसलिए मुझे नहीं बुलाया गया। जरूरी नहीं कि हर कार्यक्रम में मैं मौजूद रहूं।”

इस बीच, बंगाल बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने भी इस मुद्दे पर कहा, “दिलीप घोष एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। हम इस पर कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं कर सकते।” हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि या तो पार्टी स्वयं घोष से दूरी बना रही है, या फिर घोष किसी कारणवश खुद को अलग रख रहे हैं। एक अन्य वरिष्ठ नेता ने इशारा किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी दिलीप घोष की सक्रियता सीमित रह सकती है। यह भी संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी अब बंगाल में नेतृत्व की नई संरचना की ओर बढ़ रही है, जहां घोष की भूमिका पहले जैसी केंद्रीय नहीं रहेगी।

गौरतलब है कि दिलीप घोष 2015 से ही बंगाल बीजेपी की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा रहे हैं। 2016 में वे पहली बार विधायक बने और तब से पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर रही। लेकिन अब बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच, उनकी भूमिका और भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल एक रणनीतिक रूप से अहम राज्य है, और वहां के नेतृत्व में उठापटक पार्टी के लिए चुनौती बन सकती है। दिलीप घोष की मौजूदा स्थिति और उनकी निष्क्रियता इस बात का संकेत है कि पार्टी में अंदरूनी बदलाव की प्रक्रिया चल रही है, जिसका असर आगामी चुनावों में भी दिखाई दे सकता है।

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