
अजमेर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चढ़ाने के लिए उर्स के मौके पर एक विशेष चादर भेजी है। इस चादर को 4 जनवरी को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू दरगाह पर पेश करेंगे। यह परंपरा स्वतंत्रता के बाद से भारत के प्रधानमंत्रियों द्वारा निभाई जाती रही है।
सरकार की सांस्कृतिक सम्मान की परंपरा
दरगाह के प्रमुख नसीरुद्दीन चिश्ती ने प्रधानमंत्री के इस कदम को उन लोगों के लिए करारा जवाब बताया, जो धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “यह देश को एकता की ज़रूरत है, न कि मंदिर-मस्जिद विवाद की। प्रधानमंत्री मोदी इस परंपरा को 2014 से निभा रहे हैं और यह भारत की सभ्यता और संस्कृति का सम्मान दर्शाता है।”
विपक्ष और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री द्वारा चादर भेजे जाने पर हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब तक दरगाह से संबंधित कोर्ट का मामला चल रहा है, तब तक चादर भेजना स्थगित किया जाना चाहिए। हिंदू सेना ने दावा किया है कि यह दरगाह एक शिव मंदिर पर बनाई गई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की याचिकाओं पर रोक लगा दी है। वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने चुटकी लेते हुए कहा, “पहले भाजपा दिल्ली में इमामों की तनख़्वाह की मांग कर रही थी, और अब दरगाह में चादर चढ़ा रही है। क्या भाजपा बदल रही है?”
चादर का सांस्कृतिक महत्व
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री द्वारा चादर सौंपे जाने की तस्वीर साझा की और इसे भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक बताया। बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, “प्रधानमंत्री हर साल चादर भेजकर देश में अमन, शांति और एकता का संदेश देते हैं।”
अजमेर दरगाह के खादिम और चिश्ती फाउंडेशन के चेयरमैन हाजी सलमान चिश्ती ने प्रधानमंत्री की चादर का स्वागत करते हुए इसे देश के 140 करोड़ लोगों के लिए मोहब्बत, अमन और एकता का तोहफ़ा बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कदम भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और सभी धर्मों के सम्मान की भावना को और सुदृढ़ करता है। दरगाह के प्रमुख ने कहा, “यह परंपरा भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जो हर मजहब का सम्मान करने की सीख देती है।”