123 वक्फ संपत्तियों के ट्रांसफर पर सियासी भूचाल, मोदी सरकार ने यूपीए सरकार पर लगाए गंभीर आरोप, जांच की मांग तेज

नई दिल्ली: लोकसभा (Loksabha) में बुधवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू (Kiren Rijiju) ने 2014 में यूपीए सरकार द्वारा दिल्ली की 123 संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर किए जाने के फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह निर्णय राजनीतिक उद्देश्य से लिया गया था और इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए। यह विवाद यूपीए सरकार के अंतिम दिनों में लिए गए फैसले से जुड़ा है, जिसमें लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू होने से महज एक दिन पहले दिल्ली की 123 महत्वपूर्ण संपत्तियों को डीनोटिफाई कर वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया था।
क्या था पूरा मामला?
2014 में यूपीए सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने 1911-1915 के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिग्रहित 123 संपत्तियों को डीनोटिफाई कर दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंपने के लिए एक कैबिनेट ड्राफ्ट नोट तैयार किया था।
- इन 123 संपत्तियों में से 61 भूमि एवं विकास विभाग के अधीन थीं, जबकि बाकी दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के पास थीं।
- ये संपत्तियां दिल्ली के प्रमुख इलाकों – अशोक रोड, जनपथ, संसद मार्ग, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज और जंगपुरा में स्थित थीं।
- यह ट्रांसफर मार्च 2014 में हुआ, जब यूपीए सरकार अपने आखिरी दिनों में थी और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने वाली थी।
वीएचपी ने हाई कोर्ट में दी थी चुनौती
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर इस फैसले को चुनौती दी। वीएचपी ने अपनी याचिका में कहा कि:
- सरकारी संपत्तियों का अधिग्रहण एक कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ था, और उन्हें Land Acquisition Act की धारा 48 के तहत वापस नहीं किया जा सकता।
- यह ट्रांसफर यूपीए सरकार द्वारा वोट बैंक की राजनीति के तहत किया गया।
- इन संपत्तियों में मस्जिदें, दुकानें और आवासीय भवन स्थित हैं, जिनका उपयोग व्यावसायिक रूप से किया जा रहा है।
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद पर आरोप
तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने 2015 में The Indian Express को दिए एक साक्षात्कार में दावा किया था कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने इस ट्रांसफर में अहम भूमिका निभाई थी। वेंकैया नायडू ने कहा, “कांग्रेस ने अपने पद से हटने से पहले वोट बैंक की राजनीति के चलते इन संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर किया।”
कानूनी आपत्ति के बावजूद ट्रांसफर क्यों हुआ?
यूपीए सरकार में जनवरी 2013 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने इस ट्रांसफर को कानूनी रूप से अवैध बताया था। उन्होंने यूपीए सरकार को सलाह दी थी कि इस ट्रांसफर को कानूनी रूप से सही ठहराना मुश्किल होगा। इसके बावजूद, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने Central Waqf Council के तहत विशेषज्ञों की एक समिति गठित की, जिसने इस ट्रांसफर को वैध बताया। इसके बाद वाहनवती ने भी अपनी सहमति दे दी और यह संपत्तियां वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर कर दी गईं।
क्या होगा आगे?
मोदी सरकार ने लोकसभा में इस मुद्दे को फिर से उठाने के बाद इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग तेज कर दी है। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है, जबकि भाजपा इसे यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण बता रही है। अब देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर आगे क्या कदम उठाती है और क्या यह मामला कानूनी प्रक्रिया के तहत किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेगा।