पाकिस्तान से आज़ादी की मुहिम तेज़, पश्तून, बलूच, सिंधी और कश्मीरी समुदायों ने एकजुट होकर उठाई ‘मुक्ति’ की मांग

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Fight Against Pakistan: अफगान यूनाइटेड फ्रंट की बैठक में पश्तून, बलूच, सिंधी और कश्मीरी कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान से आज़ादी की प्रतिबद्धता दोहराई। ‘मदरसों से ब्रेनवॉश’ और सैन्य प्रभुत्व के आरोपों पर विस्तृत रिपोर्ट।

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के भीतर दबे असंतोष और आज़ादी की मांग को एक नई आवाज़ और एकजुटता मिली है। पश्तून, बलूच, सिंधी और पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के कश्मीरी समुदायों के प्रमुख राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान के नियंत्रण से ‘मुक्ति’ के लिए अपनी लड़ाई को और मज़बूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई है। अफगान यूनाइटेड फ्रंट द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन बैठक के दौरान इन समुदायों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्रों की आज़ादी की लड़ाई के प्रति अपनी दृढ़ता व्यक्त की। इस महत्वपूर्ण बैठक की जानकारी पीओजेके के कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्ज़ा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा की।

शिक्षा, मीडिया और मदरसे बने ‘ब्रेनवॉश’ का हथियार

बैठक के दौरान, सभी समुदायों के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान ने जानबूझकर शिक्षा प्रणाली, मीडिया और धार्मिक मदरसों को ‘वैचारिक ब्रेनवॉश’ के साधन के तौर पर इस्तेमाल किया है ताकि राष्ट्रीय पहचानों को विकृत और कमज़ोर किया जा सके।

  • मदरसों का विस्तार: प्रतिनिधियों ने जनरल ज़ियाउल हक के शासनकाल (1977-1988) पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि इस दौरान खैबर पख्तूनख्वा में मदरसों की संख्या मात्र 89 से बढ़कर लगभग 10,000 पंजीकृत संस्थानों तक पहुंच गई थी।
  • पश्तून राष्ट्रवाद को कमजोर करना: प्रतिनिधियों के अनुसार, ज़ियाउल हक ने इन मदरसों को ‘इस्लाम के किले’ घोषित किया था। इनका दोहरा उद्देश्य था—अफगानिस्तान में कठोर इस्लामी ढांचे को थोपना और साथ ही, पाकिस्तान के भीतर पश्तून राष्ट्रवाद को कमज़ोर करना।
  • ‘पश्तूनिस्तान’ की रणनीति: पश्तून प्रतिनिधियों ने ज़ोर देकर कहा कि खैबर पख्तूनख्वा का गठन और एक अलग ‘पश्तूनिस्तान’ की अवधारणा जानबूझकर अपनाई गई रणनीतियाँ थीं। इसका मक़सद पश्तून पहचान को भ्रमित और विभाजित करना था, जबकि यह पहचान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर अफगानिस्तान से जुड़ी हुई है।

सैन्य प्रभुत्व और सिंधी उपेक्षा का आरोप

प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान में होने वाली आतंकी घटनाओं की प्रकृति पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि कट्टरपंथी संगठनों का नेतृत्व और उनके संचालन केंद्र कथित तौर पर पंजाब प्रांत में स्थित होने के बावजूद, वह प्रांत ऐसे बड़े हमलों से हमेशा अछूता क्यों रहता है। सिंधी प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि उनका प्रांत पूरी तरह से पाकिस्तानी सेना के प्रभुत्व में जकड़ा हुआ है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया। उनके मुताबिक आज तक किसी भी सिंधी व्यक्ति को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, कोर कमांडर या किसी अन्य उच्च सैन्य पद पर नियुक्त नहीं किया गया है।

यह आरोप पाकिस्तान के भीतर सैन्य और प्रशासनिक नियुक्तियों में क्षेत्रीय पूर्वाग्रह की ओर इशारा करता है। गौरतलब है किऑनलाइन मंच पर विभिन्न शोषित समुदायों की यह एकजुटता पाकिस्तान की मौजूदा क्षेत्रीय अखंडता और आंतरिक नीतियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है। इन समुदायों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी पहचान, संस्कृति और क्षेत्रों की स्वायत्तता के लिए एक लंबी लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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