Bihar SIR Row Deepens: बिहार में SIR के दौरान 65 लाख नाम हटाए जाने के बाद विवाद गहराया। विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में। चुनाव आयोग ने आरोपों को झूठा बताया, सुप्रीम कोर्ट ने पारदर्शिता के आदेश दिए।
नई दिल्ली: चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विवाद अब एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है। सूत्रों के अनुसार, विपक्षी दल मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं। इस मुद्दे पर INDIA गठबंधन की बैठक में चर्चा हुई है और अंतिम निर्णय जल्द लिया जा सकता है। इसके साथ ही, गठबंधन के नेता उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम पर भी सोमवार (18 अगस्त) शाम चर्चा करेंगे।
SIR को लेकर बढ़ा विवाद
बिहार में हुए SIR के तहत मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए जाने ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को मनमाना और लोकतंत्र के लिए खतरनाक करार दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि “बीजेपी वोट चोरी कर रही है और आयोग इसमें उसकी मदद कर रहा है।”
चुनाव आयोग का पलटवार
विवाद गहराने के बीच चुनाव आयोग ने रविवार (17 अगस्त) को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। आयोग ने कहा, “वोट चोरी का आरोप पूरी तरह झूठा और निराधार है। चुनाव आयोग न किसी दबाव में है और न ही मतदाता ऐसे आरोपों से विचलित होंगे।” आयोग ने साथ ही मतदाताओं से अपील की कि वे अपने संवैधानिक अधिकार का पूरी निष्ठा से प्रयोग करें। गौरतलब है कि आयोग ने इससे पहले राहुल गांधी से सार्वजनिक तौर पर सबूत मांगे थे, ताकि उनके आरोपों की सच्चाई सामने आ सके।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
SIR प्रक्रिया पर उठे सवालों को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। अदालत ने चुनाव आयोग को स्पष्ट निर्देश दिया कि मतदाता सूची से हटाए गए सभी नाम सार्वजनिक किए जाएं। इसके बाद आयोग ने आदेश का पालन करते हुए 65 लाख हटाए गए नामों की पूरी सूची अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दी।
विपक्ष की रणनीति और आगे की राह
अब जब विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी कर रहा है, तो टकराव और बढ़ना तय है। हालांकि संसद में महाभियोग पारित कराने के लिए आवश्यक संख्या बल विपक्ष के पास नहीं है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह कदम सरकार और चुनाव आयोग दोनों पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में यह विवाद भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर एक गंभीर बहस को जन्म देगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह मुद्दा महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां की चुनावी प्रक्रियाओं पर वैश्विक नजर हमेशा बनी रहती है।