भारत-रूस व्यापार: नई ऊँचाइयाँ, असंतुलन की चुनौती और संतुलन की राह

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India-Russia Trade 2025: भारत-रूस व्यापार 2025 में रिकॉर्ड ऊँचाइयों पर पहुँच गया है, लेकिन व्यापार असंतुलन बड़ी चुनौती बना हुआ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को दौरे में संतुलन और नए अवसरों पर जोर दिया।

भारत और रूस के संबंध दशकों से भरोसे, सहयोग और रणनीतिक साझेदारी की मजबूत नींव पर खड़े रहे हैं। शीत युद्ध के समय से ही यह रिश्ता रक्षा, ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में निरंतर गहराता गया है। लेकिन मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में इस साझेदारी के सामने नई चुनौतियाँ और अवसर दोनों मौजूद हैं। हाल ही में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का रूस दौरा इसी दिशा में एक अहम कदम साबित हुआ। उन्होंने मॉस्को में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मंतुरोव से मुलाकात कर व्यापार और आर्थिक सहयोग पर विस्तृत चर्चा की। यह दौरा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की उच्चस्तरीय रूस यात्रा के दो सप्ताह बाद हुआ, जो इस रिश्ते की गहराई और प्रासंगिकता को दर्शाता है।

व्यापारिक असंतुलन का मुद्दा

भारत-रूस व्यापार ने पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। 2021 में जहाँ द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब डॉलर था, वहीं 2024-25 तक यह बढ़कर 68 अरब डॉलर तक पहुँच गया। लेकिन इस तीव्र वृद्धि के साथ व्यापार असंतुलन भी बढ़ा है। 2021 में यह असंतुलन 6.6 अरब डॉलर था, जो अब 58.9 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि यह स्थिति लंबे समय तक संतुलित संबंधों के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि ऊर्जा और कच्चे माल से आगे बढ़कर भारत को अपने निर्यात को विविधतापूर्ण बनाने की जरूरत है। इससे न केवल व्यापार संतुलन सुधरेगा, बल्कि दोनों अर्थव्यवस्थाओं की पूरक प्रकृति का बेहतर उपयोग भी हो सकेगा।

भारतीय अवसर और रूसी भागीदारी

भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसकी जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक और विकास दर लगभग 7 प्रतिशत है। ऐसे में भारत स्वाभाविक रूप से ऊर्जा और संसाधनों की बड़ी मांग रखता है। उर्वरक, रसायन, मशीनरी, अवसंरचना और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में रूस के लिए भारत में निवेश और साझेदारी की अपार संभावनाएँ हैं। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान, शहरीकरण और आधुनिक अवसंरचना के विकास ने विदेशी निवेशकों के लिए नए द्वार खोले हैं। जयशंकर ने रूसी कंपनियों को इन अवसरों का लाभ उठाने और भारतीय साझेदारों के साथ गहरे जुड़ाव का आमंत्रण दिया।

स्थायी रिश्तों की दिशा

भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक सहयोग का दायरा केवल रक्षा सौदों या ऊर्जा आपूर्ति तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बदलते समय में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, डिजिटल नवाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग को बढ़ाना आवश्यक है। जयशंकर का संदेश साफ था — यह रिश्ता जितना पुराना है, उतना ही आज भी प्रासंगिक है। लेकिन इसे स्थायी और संतुलित बनाने के लिए दोनों देशों को रणनीतिक प्रयासों और परिश्रम की जरूरत है। यदि व्यापारिक असंतुलन को कम कर लिया जाए और सहयोग के नए रास्ते खोले जाएँ, तो भारत-रूस की साझेदारी भविष्य में और भी सशक्त रूप में सामने आ सकती है।

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