Malegaon Blast Case Verdict: 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में NIA कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। मृतकों और घायलों के लिए न्याय की प्रतीक्षा 16 साल बाद भी अधूरी रही।
मुंबई: वर्ष 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। इन आरोपियों में भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) श्रीकांत पुरोहित प्रमुख नाम रहे। 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल में विस्फोटक उपकरण से धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।

घटना के बाद इस मामले की जांच पहले महाराष्ट्र एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) को सौंपी गई थी, जिसका जांच मुंबई 26/11 हमले में शहीद हेमंत करकरे कर रहे थे, लेकिन बाद में इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को स्थानांतरित कर दिया गया। इतने सालों तक एनआईए ने इसकी जांच की लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं जुटा पाई। ब्लास्ट में इस्तेमाल में मोटरसाईकिल जिसको साध्वी प्रज्ञा का बताया गया था लेकिन जांच में ये भी साबित नहीं हो पाया कि ये मोटर साईकिल साध्वी प्रज्ञा का है और ना ही ये साबित हो पाया कि कर्नल पुरोहित ही कश्मीर से आरडीएक्स लेकर आए थे।

एनआईए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका, और अधिकांश चश्मदीद गवाह अपने पुराने बयानों से पलट गए। अदालत ने कहा कि इस कारण सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है। आरोपियों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे। इनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा चलाया गया था।
ATS ने आरोप लगाया था कि धमाके में इस्तेमाल की गई बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम पर पंजीकृत थी, और धमाके से पहले भोपाल, इंदौर समेत कई शहरों में साजिश की बैठकों का आयोजन किया गया था। इस मामले में ट्रायल की शुरुआत 2018 में हुई थी, और अंतिम सुनवाई 19 अप्रैल 2025 को संपन्न हुई थी। 16 वर्षों के लंबे न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह फैसला सामने आया है, जिसने फिर एक बार भारत की न्यायिक प्रक्रिया और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर बहस छेड़ दी है।