
नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत के संबंधों के बारे में महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने बताया कि 21 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत देमचोक और डेपसांग में गश्त फिर से शुरू होगी। हालांकि, इस समझौते का अर्थ यह नहीं है कि भारत और चीन के बीच सभी मुद्दे हल हो गए हैं, बल्कि यह पहला चरण है और आने वाले समय में संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में और प्रयास किए जाएंगे।
देमचोक और डेपसांग में गश्त का समझौता
जयशंकर ने कहा कि 21 अक्टूबर को हुए समझौते के अनुसार, देमचोक और डेपसांग में गश्त की प्रक्रिया फिर से बहाल की जाएगी। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे दोनों देशों के बीच एलएसी पर तनाव में कमी आएगी और स्थिति को प्रबंधित करने के लिए दोनों पक्षों को आगे की योजना बनाने का अवसर मिलेगा। जयशंकर ने इस समझौते का श्रेय भारतीय सेना को दिया, जिसने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में काम किया और देश की रक्षा के लिए मोर्चे पर डटे रहे।
सैनिकों के पीछे हटने का पहला चरण
जयशंकर ने बताया कि समझौते का पहला चरण पूरा होने के बाद अगले कदमों पर विचार किया जा रहा है। इसके बावजूद, अभी भी कई मसलों को सुलझाना बाकी है। उन्होंने जोर दिया कि सेना और कूटनीति दोनों ने मिलकर इस समझौते को संभव बनाया है। कूटनीतिक प्रयासों के साथ-साथ, सीमा पर तैनात भारतीय सेना ने भी बड़ी मजबूती से अपनी स्थिति बनाए रखी, जो इस सफलता का एक मुख्य कारण है।
संबंध सामान्य बनाने में समय लगेगा
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को पूरी तरह सामान्य बनाने में समय लगेगा। पिछले कुछ सालों में सीमा पर बने तनाव को कम करने के लिए कई समझौते और बातचीत की गई हैं, लेकिन सीमा विवादों और तनाव को खत्म करने के लिए विश्वास और भरोसे को फिर से कायम करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी, और दोनों देशों के बीच अगले कदमों पर विचार करने के लिए अपने-अपने विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का निर्णय लिया था।
बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत
जयशंकर ने बताया कि पिछले एक दशक में भारत ने सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे में काफी सुधार किया है। इससे पहले सीमा के करीब सड़कों और अन्य ढांचागत सुविधाओं की उपेक्षा की गई थी, जिससे सेना को प्रभावी ढंग से तैनात करने में मुश्किल होती थी। लेकिन अब भारत प्रति वर्ष पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहा है, जिससे सैनिकों की तैनाती और सीमा की निगरानी बेहतर तरीके से हो पा रही है।
भारत-चीन के बीच तनाव का इतिहास
भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से बढ़ गया था। यह दोनों देशों के बीच दशकों का सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था। तब से दोनों देश बातचीत के जरिए समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे थे। विदेश मंत्री ने कहा कि सितंबर 2020 से लेकर अब तक भारत लगातार इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहा है।
गश्त के मुद्दे का समाधान
जयशंकर ने बताया कि चीन के साथ सीमा प्रबंधन और गश्त को लेकर एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। 21 अक्टूबर को हुए समझौते के अनुसार, गश्त की प्रक्रिया फिर से उसी प्रकार से शुरू होगी जैसी पहले होती थी। पिछले दो वर्षों से गश्त बाधित थी, और इसी पर दोनों देशों के बीच बातचीत हो रही थी।
इस तरह, इस समझौते के बाद सैनिकों की वापसी और गश्त की पुनः बहाली हुई है, लेकिन अभी भी संबंधों को सामान्य बनाने के लिए आगे और भी कई कदम उठाने की जरूरत होगी।