संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट के अनुसार भारत की प्रजनन दर 1.9 तक गिर गई है, जिससे आने वाले दशकों में जनसंख्या स्थिरता और युवा आबादी पर प्रभाव पड़ सकता है।
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में जारी जनसांख्यिकीय रिपोर्ट ने भारत की जनसंख्या संरचना को लेकर अहम संकेत दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भले ही भारत की कुल जनसंख्या 2025 के अंत तक 1.46 अरब के साथ दुनिया में सबसे ज्यादा हो जाएगी, लेकिन इसके भीतर चल रहे गहरे बदलाव भविष्य के लिए गंभीर संकेत हैं।
युवा आबादी अब भी मजबूत स्तंभ
रिपोर्ट में बताया गया कि वर्तमान में भारत की 0-14 वर्ष आयु वर्ग की आबादी 24%, 10-19 वर्ष की 17% और 10-24 वर्ष की 26% है। इसके साथ ही, देश की 68% आबादी 15-64 वर्ष के बीच की है, जिसे कामकाजी आबादी माना जाता है। यह वर्ग यदि पर्याप्त रोजगार, कौशल विकास और नीतिगत समर्थन प्राप्त करे, तो भारत के लिए यह ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ (Demographic Dividend) का सुनहरा अवसर साबित हो सकता है।
घटती प्रजनन दर: लाभांश का समय सीमित?
भारत की कुल प्रजनन दर अब 1.9 पर आ चुकी है, जबकि जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए औसत प्रतिस्थापन दर 2.1 मानी जाती है। यानी औसतन एक महिला को 2.1 बच्चे पैदा करने चाहिए ताकि एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को पूरी तरह प्रतिस्थापित कर सके। इससे नीचे आने का अर्थ है कि लंबी अवधि में देश की जनसंख्या में गिरावट की आशंका है – भले ही इसमें 50 से 60 साल लगें।
बुजुर्ग आबादी में वृद्धि की संभावना
रिपोर्ट बताती है कि फिलहाल भारत की 65 वर्ष या उससे अधिक आयु की आबादी लगभग 7% है। लेकिन जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी के साथ यह आंकड़ा बढ़ने की उम्मीद है। अनुमान है कि 2025 तक जन्म के समय पुरुषों की औसत जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष तक पहुंच सकती है।
कम जन्म दर के पीछे आर्थिक व सामाजिक कारण
रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र किया गया है कि कम जन्म दर सिर्फ सामाजिक रुझानों का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस आर्थिक बाधाएं भी हैं। सर्वे में शामिल लगभग 38% लोगों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें अधिक बच्चे पैदा करने से रोक रही है।
अन्य कारणों में शामिल हैं:
- 22%: उचित आवास की कमी
- 21%: नौकरी की असुरक्षा
- 18%: बच्चों की देखभाल के संसाधनों की कमी
- 15%: सामान्य स्वास्थ्य की खराब स्थिति
- 14%: गर्भावस्था देखभाल तक सीमित पहुंच
- 13%: बांझपन की समस्या
क्या है आगे का रास्ता?
भारत के लिए यह समय सतर्कता और रणनीतिक योजना का है। जहां एक ओर युवा आबादी का सही उपयोग किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर नीतियों को इस दिशा में ढालना होगा कि वे भविष्य की बुजुर्ग होती जनसंख्या, रोजगार के अवसर, सामाजिक सुरक्षा और बाल देखभाल प्रणाली को सुदृढ़ करें। भारत फिलहाल जनसांख्यिकीय लाभांश के मध्य दौर में है, लेकिन घटती प्रजनन दर और बढ़ती उम्रदराज आबादी भविष्य के लिए नई चुनौतियां पेश कर सकती हैं। सतत विकास और सामाजिक स्थिरता के लिए सरकारों, नीतिनिर्माताओं और समाज को मिलकर एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।