
नई दिल्ली: सऊदी अरब के प्रिंस सलमान अपने तीन दिन के राजकीय दौरे पर भारत पहुंचे थे। दरअसल उन्होंने दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और फिर सोमवार को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की और कई मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। इस दौरान प्रिंस सलमान की मुलाकात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ भी हुई। वही यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि पिछले कुछ सालों में भारत और सऊदी अरब के रिश्ते और ज्यादा गाढ़े हुए हैं और इसके कई उदाहरण हैं।
कैसे हैं दोनों देश के रिश्ते?
दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्ते बहुत पुराने हैं। दोनों देशों के बीच रिश्ते करीब करीब 1947 में ही बन गए थे और तब से दोनों देशों के नेता लगातार यात्रा कर रहे हैं। हालांकि इस रिश्ते में मजबूती तब और आ गई थी जब साल 1955 में किंग सऊद बिन अब्दुलअज़ीज अल सऊद अपनी 17 दिनों की यात्रा पर भारत आए थे। अभी वर्तमान समय की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी खुद दो बार रियाद जा चुके हैं। प्रिंस सलमान भी इससे पहले 2019 के फरवरी महीने में भारत आ चुके हैं। वहीं अप्रैल 2016 में पीएम मोदी को सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया था।

वहीं बात करें कारोबार की तो दोनों देशों के बीच काफी पुरानी व्यापारिक साझेदारी है। भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर सऊदी अरब ही है। साल 2022 में भारत ने सऊदी अरब से करीब 549 अरब का सामान निर्यात किया था और उसके मुकाबले करीब 1875 अरब का सामान आयात किया था। जैसा कि सभी जानते हैं कि अरब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादन करने वाली देश है। भारत में तेल का करीब 18 फीसदी हिस्सा अरब से ही आता है, तो वहीं भारत सऊदी अरब को चावल, टेक्सटाइल, केमिकल आदि चीजें निर्यात करता है।

फिलहाल सऊदी अरब की जरुरतें क्या हैं?
जानकार मानते हैं कि सऊदी अरब अपने आप को ग्लोबलाइज कर रहा है। वो दूनियाभर में अपनी पहचान बनाने की कवायत कर रहा है। ये देश पोस्ट-ऑयल दुनिया की तैयारी कर रही है और ऐसी दुनिया में आर्थिक रुप से विविधीकरण कैसे होगा, जिसमें तेल के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी उसका निर्यात बढ़े और उसके पैसे सुरक्षित और गारंटीड निवेश हो। वहीं दूसरी तरफ सऊदी अरब ये भी देख रहा है कि इकोनॉमिक एक्ट्रैक्टिवनेस वेस्ट से ईस्ट की तरफ शिफ्ट हो रहा है, जिसके लिए भारत और चीन दो बड़ी शक्ति के रुप में उभर रहे हैं। सऊदी अरब ये मान कर चल रहा है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सऊदी को पता है कि भारत में दिनों दिन तेल की खपत बढ़ेगी और एनर्जी के मोर्चे पर किसी भी दूसरे सोस्र को तेल की जगह लेने में अभी कम से कम 20 से 25 साल लग जाएंगे। उसे पता है कि भारत एक दिन में करीब 25 से 30 बैरल तेल की खपत करता है और अगले 15 साल में ये बढ़कर करीब करीब 80 लाख हो जाएगा, तो ऐसे में सऊदी अरब इतने बड़े बाज़ार से मिलने वाले मौके को तो नहीं छोड़ सकता।