Editorial: कांग्रेस के लिए किसान हैं बस राजनीतिक मुद्दा! कभी किसानों के साथ नहीं हुई खड़ी, अब किसानों की मांगों को बता रहे हैं जायज़…

0Shares

हरियाणा-पंजाब सीमा पर किसान धरने पर बैठे हैं। उन्हें दिल्ली कूच करना है लेकिन पुलिस को कानून-व्यवस्था बना कर भी रखनी है। इसलिए किसानों और पुलिस के बीच कई बार संघर्ष बढ़ जाता है। इसी बीच कई राजनीतिक पार्टियां किसान आंदोलन को लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां भी सेंक रहे हैं। जिसमें कांग्रेस पार्टी भी शामिल है। लेकसभा चुनाव का वक्त है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपने स्तर से तैयारियां कर रही हैं। इसी बीच पंजाब के किसानों को भी मौका मिल गया सरकार को घेरने का।

हालांकि भोले-भाले किसान सरकार को घेरने के लिए राजनीतिक पार्टियों के मोहरे को रुप पर काम कर रहे हैं या फिर क्या है इसके पीछे की हकीकत, अभी हम इस पर बात नहीं करते हैं। लेकिन यहां आगे बढ़ने से पहले आपको इतना जरुर बता दें कि केन्द्र सरकार करीब करीब एमएसपी पर ही अनाज खरीदती है लेकिन ये किसान जहां से आए हैं वहां की सरकार बहुत कम अनाज ही एमएसपी पर खरीदती है। लेकिन ये किसान संगठन पंजाब सरकार का घेराव कभी नहीं करती। खैर…हम आगे बढ़ते हैं।

दरअसल इन दिनों कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भारत जोड़ों न्याय यात्रा निकाल रहे हैं और किसान आंदोलन के शुरु होने के बात से किसानों के रहनुमा बन रहे हैं। लेकिन उन्हें शायद इस बात का पता नहीं है कि उनकी सरकार ने भी किसानों को खुब ठगा है। जिस एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग की सिपारिश को लागू करने की वो वकालत कर रहे हैं और इसको लेकर वो लगातार केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं, उस सिफारिश की रिपोर्ट तो उनकी सरकार के शासन काल में पेश की गई थी, लेकिन तभी तो मौजूदा सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।

राहुल गांधी अपने भाषण में बार बार इस बात जिक्र करते हैं कि जब उनकी सरकार थी तो इनकी सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया था और वर्तमान सरकार को भी ऐसा ही करना चाहिए। तो चलिए आपको हकीकत से थोड़ा रुबरु कराते हैं। दरअसल अपनी चुनावी रैली में कांग्रेस युवराज राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार अगर सत्ता में वापस आती है तो स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को वो लागू करवाएंगे। लेकिन आपको बता दें कि 2004-2006 में जब भारत रत्न एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में बने आयोग ने तत्कालीन सरकार के सामने रिपोर्ट पेश की थी तो उसे खारिज कर दिया गया था और कहा गया था कि ये रिपोर्ट अव्यावहारिक है।

दरअसल एमएस स्वामीनाथन ने अपनी इस रिपोर्च में कहा था कि किसानों को किसी भी फसल के लिए प्रोडक्शन की औसत लागत की 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी दी जाए, ताकि किसानों को 50 फीसदी तक रिटर्न मिल जाए। लेकिन 2010 में यूपीए सरकार के दौरान के संसद में प्रश्नकाल से जुड़ा दस्तावेज का पता चला जिसे पढ़ने के बाद साफ पता चलता है कि कांग्रेस सरकार की इसे लागू करने की कोई मंशा ही नहीं थी। संसद के अंदर एक सवाल के जवाब में तभी की सरकार ने स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अव्यवावहारिक और अव्यवहार्य बताय़ा था और लागू करने से इंकार कर दिया था।

कांग्रेस ने हर लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान इसे चुनावी मुद्दा बनाया और अपने घोषणा पत्र में इसे जगह भी दी। हम बहुत पुरानी नहीं कर रहे बल्कि 2018 की ही बात कर रहे हैं। इस चुनाव के दौरान ये मुद्दा कांग्रेस के प्रमुख मुद्दों में से एक था। कांग्रेस ने किसानो से वादा किया था कि अगर वो सत्ता में आती है तो किसानों का कर्ज माफ होगा। तीन राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बनी लेकिन इस राज्यों में किसानो का कर्ज माफ नहीं हुआ। इसके बाद किसानों से कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप भी लगाया।

कर्नाटक चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने कुछ ऐसा ही जुमला प्रदेश की जनता के सामने रखा लेकिन यहां भी क्या हुआ? वादा किसानों के कर्ज को माफ करने का था, लेकिन यहां सरकार ने बजट में एक तिहाई की कटौती कर दी। खुद मुख्यमंत्री एच.डी कुमारस्वामी ने माना है कि सरकार ने आवंटित बजट 15,880 करोड़ को घटा कर 5450 करोड़ कर दिया। लेकिन हां…ऐसा नहीं है कि कांग्रेस सरकार ने किसानों का कर्ज माफ़ नहीं किया था बल्कि 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने किसानों के 70 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज माफ किया था, जिसे कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में जम कर भुनाया था और ये कांग्रेस की वापसी का एक बड़ा फैक्टर बना था।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *