भारत में तकनीकी प्रगति और डिजिटल क्रांति ने लोगों की जिंदगी को आसान बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही नए प्रकार के ख़तरे भी सामने आए हैं। “डिजिटल अरेस्ट” (Digital Arrest) एक ऐसा ही चुनौतीपूर्ण और गंभीर मुद्दा है। यह स्थिति तब बनती है जब किसी व्यक्ति की डिजिटल गतिविधियों को अत्यधिक ट्रैक किया जाता है, उसके डेटा की निगरानी की जाती है और बिना इजाजत डेटा का दुरुपयोग होता है। इन तकनीकों का उपयोग कई बार सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए किया जाता है, लेकिन इसका अतिरेक लोगों की स्वतंत्रता और निजता के लिए खतरा बन सकता है।
भारत में डिजिटल अरेस्ट के प्रमुख कारण
भारत में डेटा के अत्यधिक संग्रह और उसकी निगरानी का प्रमुख कारण सरकार और कंपनियों द्वारा सुरक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाओं, और उपभोक्ता व्यवहार पर नजर रखने के लिए विभिन्न डिजिटल उपकरणों और टेक्नोलॉजी का उपयोग करना है। भारत सरकार ने कई बड़े डिजिटल पहल किए हैं, जिनमें आधार, स्वास्थ्य आईडी, और डिजिटल भुगतान की सेवाएं शामिल हैं।
आधार जैसी यूनिक आइडेंटिफिकेशन प्रणाली ने कई क्षेत्रों में लोगों की पहचान को जोड़ दिया है, जिसमें बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर, और सरकारी सेवाएं शामिल हैं। हालांकि यह सेवा लाभप्रद है, लेकिन डेटा का केंद्रीकरण और उसका बड़े स्तर पर ट्रैकिंग करना इसे जोखिमपूर्ण बना सकता है।
डिजिटल अरेस्ट के आंकड़े और तथ्य
डिजिटल निगरानी और डेटा प्राइवेसी के संबंध में निम्नलिखित आंकड़े भारत में डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते खतरे की ओर संकेत करते हैं:
- साइबर सुरक्षा रिपोर्ट: रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में 2022 में 52% इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने व्यक्तिगत डेटा लीक, हैकिंग, या साइबर धोखाधड़ी का सामना किया। 2021 की तुलना में यह आंकड़ा 15% बढ़ गया।
- डेटा सुरक्षा कानून: डेटा संरक्षण विधेयक 2023 का ड्राफ्ट जारी होने के बावजूद भारत में डेटा सुरक्षा को लेकर प्रभावी कानून का अभाव है, जिससे कंपनियां और सरकारी एजेंसियां डेटा का व्यापक रूप से संग्रह कर सकती हैं।
- डिजिटल निगरानी बढ़त: भारत में वीडियो सर्विलांस का उपयोग दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा है। भारत में लगभग 8 करोड़ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, और कई जगहों पर पुलिस और निजी एजेंसियां इन कैमरों का उपयोग लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए करती हैं।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बच सकते हैं?
डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए आवश्यक है कि लोग अपनी डिजिटल गतिविधियों को समझें और सतर्क रहें। इसके लिए कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:
- प्राइवेसी सेटिंग्स का उपयोग: सोशल मीडिया, बैंकिंग ऐप्स, और अन्य ऑनलाइन सेवाओं पर प्राइवेसी सेटिंग्स को उचित रूप से सेट करें ताकि आपके डेटा को सिर्फ आवश्यक लोगों तक ही पहुंच मिले।
- दो-स्तरीय प्रमाणीकरण (Two-Factor Authentication): अपने अकाउंट्स को सुरक्षित रखने के लिए दो-स्तरीय प्रमाणीकरण का उपयोग करें। इससे आपके अकाउंट में किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा एक्सेस करना मुश्किल हो जाएगा।
- VPN और एंटीवायरस का उपयोग: इंटरनेट पर सुरक्षित रूप से ब्राउज़ करने के लिए VPN का उपयोग करें और अपने डिवाइस में एंटीवायरस और एंटी-मैलवेयर सॉफ़्टवेयर इंस्टॉल रखें।
- डिजिटल साक्षरता और जागरूकता: लोगों को यह समझना चाहिए कि उनका डेटा किस प्रकार से एकत्रित किया जा रहा है और इसका उपयोग कैसे हो सकता है। इसे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि लोग तकनीकी प्रगति के साथ-साथ अपनी प्राइवेसी को भी समझ सकें।
- डेटा एक्सेसिंग पर निगरानी: यदि संभव हो, तो ऐप्स और वेबसाइट्स को आपके डेटा का एक्सेस न दें या केवल आवश्यक परमिशन ही दें।
भारत में डिजिटल अरेस्ट पर सरकार की पहल
भारत में डिजिटल अरेस्ट को रोकने के लिए कुछ पहल की जा रही हैं। नए डेटा प्रोटेक्शन बिल के तहत डेटा संग्रहण की सीमा तय करने और संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। लेकिन अभी भी भारत को एक सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून की आवश्यकता है, जो लोगों की डिजिटल निजता की सुरक्षा कर सके।
डिजिटल अरेस्ट आज के डिजिटल युग में एक गंभीर समस्या बन गई है, और भारत में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जबकि टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन को सुविधाजनक बनाया है, इसने एक तरह की “डिजिटल कैद” भी बनाई है। लोगों को अपनी सुरक्षा और निजता के प्रति सतर्क रहना होगा और सरकार को भी डिजिटल निजता की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।