बिहार में फिर उठी डोमिसाइल रिजर्वेशन की मांग, युवाओं ने कहा – ‘वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी’

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बिहार (Bihar) में विधानसभा चुनाव से पहले डोमिसाइल रिजर्वेशन का मुद्दा गरमाया। स्थानीय युवाओं ने सरकारी नौकरियों में बाहरी उम्मीदवारों को रोकने की मांग उठाई।

पटना: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा फिर से चर्चा में है – सरकारी नौकरियों में डोमिसाइल (स्थानीय निवास) आरक्षण की मांग। 5 जून को पटना में कई छात्र संगठनों ने प्रदर्शन करते हुए यह मांग जोर-शोर से उठाई। इनका कहना है कि बिहार के युवाओं को अपनी ही धरती पर रोजगार नहीं मिल पा रहा, क्योंकि अन्य राज्यों के उम्मीदवार नौकरियां हथिया रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का नारा, “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी”, इस असंतोष को गहराई से दर्शाता है।

 छात्र संगठनों का कहना है कि जब बिहार के लोग यहां की सरकार चुनते हैं, तो उन्हें नौकरियों में प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की बेरोजगारी दर 3.9% है, जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से अधिक है। राज्य में युवाओं की बड़ी संख्या सरकारी नौकरियों की तैयारी करती है, लेकिन हाल के वर्षों में परीक्षा प्रक्रिया में गड़बड़ियों और बाहरी उम्मीदवारों की संख्या को लेकर व्यापक असंतोष फैल गया है।

डोमिसाइल रिजर्वेशन का इतिहास
डिसंबर 2020 में बिहार सरकार ने कुछ समय के लिए डोमिसाइल नियम लागू किया था, लेकिन जून 2023 में महागठबंधन सरकार ने इस नियम को वापस ले लिया। इसके बाद से ही फिर से यह मांग उठने लगी है कि बिहार के युवाओं को नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए।

आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि
नीति आयोग की मार्च 2025 की रिपोर्ट ‘Macro and Fiscal Landscape of the State of Bihar’ में बताया गया कि बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है। वर्ष 2022-23 में राज्य की लगभग 49.6% आबादी कृषि क्षेत्र में कार्यरत थी। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में केवल 5.7% लोग रोजगार पाते हैं, जो देश में सबसे कम आंकड़ों में शामिल है। शेष रोजगार सेवा क्षेत्र (26%) और निर्माण क्षेत्र (18.4%) में हैं।

युवाओं का मानना है कि जब तक बिहार में स्थानीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक बेरोजगारी की समस्या को सुलझाना मुश्किल होगा। इस मांग ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है, और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी मौसम में विभिन्न राजनीतिक दल इस पर क्या रुख अपनाते हैं। डोमिसाइल रिजर्वेशन की मांग केवल रोजगार से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय समानता का सवाल बन चुकी है। बिहार के युवाओं को उम्मीद है कि उनकी आवाज इस बार अनसुनी नहीं की जाएगी।

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