
नई दिल्ली: 1989 में भारत की राजनीति का वो दौर तो आपको याद ही होगा, जब वीपी सिंह के नेतृत्व में देश में जनता दल की सरकार बनी थी और यही वो दौर था जब देश में पहली बार गठबंधन का दौर शुरु हुआ था। इसके बाद से कोई भी सरकार बिना गठबंधन के आगे नहीं चल पाई। इसी के बाद से NDA और UPA का गठन हुआ। लेकिन 2014 में ये सारी अवधारणाएं बदल गई जब 2014 में देश में पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि इस वक्त भी बीजेपी ने पुराने समय से चले आ रहे अपने गठबंधन धर्म का पालन कि या था।
2019 में भी बीजेपी (BJP) के ये तेवर कायम रहा और बीजेपी के सीटों में भी बढ़ोतरी हुई और बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई। लेकिन 2024 के चुनाव में एक बड़ा उलटफेर नजर आया। जिस उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा सीट आने का दम बीजेपी भर रही थी, वहां से सीटें नहीं आई और इसका नतीजा ये हुआ कि एनडीए को तो पूर्ण बहुमत मिल गया लेकिन 2014 औऱ 2019 की तरह बीजेपी इस बार जादुई आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। इस बार की सरकार के लिए किंग मेकर की भूमिका में आ गए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू।
चूकि बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। जबकि बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए के पास बहुमत है तो सरकार तो बनेगी लेकिन इस बार सहयोगी दलों के नखरों को भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को झेलना पड़ेगा। मतलब वापस से बीजेपी भारतीय राजनीति के उस 35 साल पुराने दौर में वापस लौट आई है। जिसकी राह बीजेपी के लिए आसान नहीं रहने वाली। यहां तक कि देश के विकास की गति धीमी हो सकती है।
आने वाली सरकार में प्रधानमंत्री को चार ऐसे बड़े फैसले लेने थे, जिसमें अब वो खटाई में भी पड़ सकता है। इस चार बड़े फैसलों में वन नेशन वन इलेक्शन, परिसीमन पर सवाल, यूनिफॉर्म सिविल कोड और विनिवेश और विशेष राज्य प्रमुख हैं।