एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल पर विवाद, विभाजन के लिए कांग्रेस, जिन्ना और माउंटबेटन को बताया जिम्मेदार

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NCERT Module Row: एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल पर विवाद छिड़ा है। इसमें भारत विभाजन के लिए जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन को जिम्मेदार ठहराया गया है। कांग्रेस ने इसे गलत ठहराते हुए मॉड्यूल जलाने की मांग की।

नई दिल्ली: एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद) द्वारा जारी किए गए एक विशेष मॉड्यूल को लेकर सियासी और शैक्षणिक हलकों में गहरा विवाद छिड़ गया है। यह मॉड्यूल विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (14 अगस्त) के अवसर पर स्कूलों के लिए जारी किया गया था। इसमें भारत विभाजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं का उल्लेख किया गया है। मॉड्यूल में कहा गया है कि भारत का विभाजन किसी एक व्यक्ति का निर्णय नहीं था, बल्कि तीन शक्तियों की भूमिका इसमें अहम रही—

  1. मोहम्मद अली जिन्ना, जिन्होंने लगातार विभाजन की मांग को आगे बढ़ाया,
  2. कांग्रेस, जिसने अंततः विभाजन को स्वीकार कर लिया,
  3. और लॉर्ड माउंटबेटन, जिन्हें इसे लागू करने के लिए भारत भेजा गया था।

इस मॉड्यूल में यह भी उल्लेख है कि विभाजन के बाद कश्मीर भारत के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती के रूप में उभरा, जिसे पड़ोसी देश ने लगातार भारत पर दबाव बनाने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया।

कांग्रेस की आपत्ति

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस मॉड्यूल पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे “सत्य को तोड़-मरोड़ कर पेश करने” वाला दस्तावेज़ बताया। उन्होंने यहां तक कहा कि इस मॉड्यूल को सार्वजनिक रूप से जलाया जाना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि एनसीईआरटी ने इतिहास को राजनीतिक चश्मे से दिखाने की कोशिश की है।

पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं

एनसीईआरटी ने स्पष्ट किया है कि यह मॉड्यूल कक्षा 6-8 और 9-12 की नियमित पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं है। इसे केवल विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर विद्यार्थियों को जागरूक करने के लिए जारी किया गया है।

लाहौर प्रस्ताव और कांग्रेस का रुख

मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का जिक्र किया गया है, जिसमें जिन्ना ने हिंदू और मुसलमानों को दो अलग-अलग समुदाय बताते हुए अलग राष्ट्र की मांग की थी। इसमें यह भी लिखा है कि ब्रिटिश शासन ने भारत को डोमिनियन स्टेटस देकर एकजुट रखने का प्रयास किया, लेकिन कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया।

पटेल और गांधी के विचार

मॉड्यूल में सरदार वल्लभभाई पटेल का हवाला देते हुए कहा गया है कि देश की स्थिति विस्फोटक हो चुकी थी और लगातार हिंसा के माहौल में गृहयुद्ध की संभावना बन रही थी। इसीलिए, विभाजन को विकल्प के रूप में स्वीकार करना पड़ा। महात्मा गांधी के दृष्टिकोण का भी उल्लेख है। मॉड्यूल के अनुसार, गांधी विभाजन के खिलाफ थे, लेकिन कांग्रेस द्वारा लिए गए निर्णय का हिंसात्मक विरोध नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि वे विभाजन में सहभागी नहीं होंगे, किंतु हिंसा के माध्यम से कांग्रेस को रोकने का भी प्रयास नहीं करेंगे। अंततः जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

विवाद पर बढ़ती बहस

यह मॉड्यूल जारी होने के बाद इतिहास की व्याख्या और उसकी राजनीतिक व्याख्या को लेकर एक बार फिर देशभर में बहस छिड़ गई है। शिक्षाविदों का कहना है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर तथ्यों और साक्ष्यों के साथ संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को सही परिप्रेक्ष्य मिल सके।

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