मतदाता सूची विवाद पर गरमाया सदन,  राहुल गांधी और अमित शाह आमने-सामने, शीतकालीन सत्र में दिखा जबरदस्त टकराव

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Clash in Parliament Over Voter List: शीतकालीन सत्र के दौरान मतदाता सूची के विशेष गहन परीक्षण (SIR) पर बहस में राहुल गांधी और अमित शाह के बीच तीखी नोकझोंक हुई। गृह मंत्री ने कहा कि संसद उनकी इच्छा से नहीं चलेगी, जबकि राहुल ने चुनावी अनियमितताओं पर पूरी बहस की मांग की।

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में बुधवार को उस समय नाटकीय स्थिति बन गई जब मतदाता सूची के विशेष गहन परीक्षण (SIR) पर चल रही बहस अचानक सरकार और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक में बदल गई। सदन में गरमा-गरमी तब शुरू हुई जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गृह मंत्री अमित शाह के भाषण के बीच हस्तक्षेप करते हुए इस मुद्दे पर “पूर्ण बहस” की खुली मांग रख दी। राहुल गांधी अपनी सीट से खड़े होकर लगातार यह कहते रहे कि मतदाता सूचियों में “बड़े पैमाने पर अनियमितताएं” हुई हैं, और उन्होंने हरियाणा में 19 लाख ‘फर्जी प्रविष्टियों’ का अपना आरोप दोहराया।

राहुल गांधी ने ये भी कहा कि हाल ही में उनके द्वारा किए गए तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो तथ्य सामने रखे हैं, उन पर सदन में विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। इस अप्रत्याशित व्यवधान से सदन में शोर-शराबा हो गया। अमित शाह ने कड़े शब्दों में जवाब देते हुए राहुल को याद दिलाया कि संसद किसी व्यक्ति की इच्छा या सुविधा से नहीं चलती। अपने अनुभव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “मैं तय करूंगा कि मुझे क्या और कब कहना है। संसद आपकी इच्छा पर नहीं चलेगी।” इसके बाद गृह मंत्री ने विपक्ष के आरोपों पर विस्तृत जवाब दिया। उन्होंने कांग्रेस पर “झूठ फैलाने” और मतदाता सूची में संशोधन को लेकर भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया। शाह ने कहा कि मतदाता पंजीकरण, संशोधन और सत्यापन जैसे मामले सरकार के नहीं, बल्कि चुनाव आयोग (ECI) के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

उन्होंने अपने भाषण में पुराने समय के कुछ विवादित मामलों का भी उल्लेख किया और कहा कि “वोट चोरी” जैसे आरोप दशकों से राजनीतिक विमर्श का हिस्सा रहे हैं। उनकी इन टिप्पणियों के बाद विपक्षी सदस्यों ने जोरदार विरोध शुरू कर दिया। वहीं दूसरी ओर, राहुल गांधी ने मीडिया से कहा कि गृह मंत्री का पूरा रुख “रक्षात्मक” था और सरकार चुनावी पारदर्शिता पर उठ रहे सवालों से “डरी हुई” दिख रही है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची की विश्वसनीयता और चुनावी सुधारों पर खुली बहस लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

इस पूरे विवाद ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मतदाता सूची सुधार और चुनावी प्रक्रियाओं को लेकर गहरे अविश्वास को उजागर कर दिया है। संसद में जारी ध्रुवीकरण यह संकेत देता है कि यह बहस आने वाले दिनों में और तीखी हो सकती है। फिलहाल इतना तय है कि मतदाता सूची की पारदर्शिता और चुनावी अखंडता का मुद्दा आने वाले राजनीतिक सत्रों में भी बड़ा केंद्र बिंदु बनने जा रहा है, और इस पर टकराव थमने के आसार कम ही हैं।

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