
Chirag Paswan
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। क्या वे 2005 की तरह अपने पिता रामविलास पासवान की तरह ‘किंगमेकर’ की भूमिका में नजर आएंगे?
पटना: बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेती नजर आ रही है और इस बार सियासी केंद्र में हैं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान। भोजपुर में हाल ही में आयोजित जनसभा में चिराग पासवान ने जो बयान दिया, उसने राज्य की सियासत को गर्म कर दिया है। उन्होंने साफ कहा कि वे बिहार की 243 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारेंगे और जनता से सीधा आशीर्वाद लेंगे। इस बयान ने न केवल एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि चिराग को भविष्य के ‘किंगमेकर’ के रूप में भी प्रस्तुत किया है। वे न सिर्फ सत्ता के शीर्ष तक पहुंचना चाहते हैं, बल्कि सत्ता की चाबी भी अपने हाथ में रखना चाहते हैं—ठीक वैसे ही जैसे उनके पिता, स्व. रामविलास पासवान ने 2005 में किया था।
2005: जब रामविलास बने थे सत्ता के सूत्रधार
साल 2005 बिहार की राजनीति का टर्निंग पॉइंट था। उसी वर्ष दो बार विधानसभा चुनाव हुए। लालू प्रसाद यादव, जो 1990 से सत्ता पर काबिज थे, इस चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हो गए। इस बदलाव में रामविलास पासवान की भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने एक मुस्लिम मुख्यमंत्री के नाम पर समर्थन न देने का रुख अपनाकर लालू को चौंका दिया था और सत्ता के समीकरण ही बदल दिए थे।
इतिहास को दोहराने की तैयारी में चिराग?
भोजपुर की सभा में चिराग ने कहा:“मैं बिहार के लिए लड़ूंगा और 243 सीटों पर लड़ूंगा। लेकिन मैं किस सीट से चुनाव लड़ूंगा, इसका फैसला जनता पर छोड़ा है। यह चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि सम्मान और विकास का है।” उनकी यह घोषणा इस ओर संकेत देती है कि वे अब ‘एकला चलो’ की राह पर हैं और उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली 100% सफलता ने और भी आत्मविश्वास से भर दिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चिराग पासवान आने वाले विधानसभा चुनावों में अकेले दम पर 29 से अधिक सीटें जीतने की रणनीति बना रहे हैं। अगर वह इसमें सफल होते हैं, तो वे किसी भी सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
एनडीए में दरार या रणनीतिक दबाव?
चिराग का यह रुख न केवल एनडीए के लिए चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में एक नई शक्ति केंद्र उभर रही है। एनडीए ने भले ही लोकसभा चुनाव में चिराग के साथ साझेदारी की हो, लेकिन विधानसभा में उनके 243 सीटों पर लड़ने की मंशा स्पष्ट रूप से स्वतंत्र राजनीतिक पहचान की ओर इशारा करती है।
दलित और युवा मतदाताओं पर नजर
चिराग पासवान अपने पिता की तरह दलित समाज में गहरी पैठ रखते हैं। साथ ही वे युवा चेहरा होने के नाते युवाओं के बीच भी लोकप्रिय हैं। उनका यह दांव इन्हीं दोनों वर्गों को एकजुट कर एक मजबूत वोटबैंक बनाने का प्रयास हो सकता है। बिहार की राजनीति एक बार फिर बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। चिराग पासवान ने संकेत दे दिए हैं कि वे अब सिर्फ सहयोगी दल नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति बनना चाहते हैं। क्या वे अपने पिता की तरह 2025 में फिर से सत्ता का संतुलन तय करेंगे? यह आने वाला समय तय करेगा, लेकिन फिलहाल इतना तो साफ है—चिराग अब ‘किंगमेकर’ नहीं, खुद ‘किंग’ बनने की लड़ाई में उतर चुके हैं।