
2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना (कास्ट सेंसस) का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी, तो वे जातीय जनगणना कराएंगे। लेकिन अब केंद्र की मोदी सरकार ने इस पर एक अहम फैसला लिया है। सरकार ने जातीय जनगणना की जगह 2024 में देश की बहुप्रतीक्षित जनगणना कराने का निर्णय लिया है, जिसे 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
सूत्रों का कहना है कि इस जनगणना प्रक्रिया में जातिगत गणना को शामिल किया जाए या नहीं, इस पर सुझाव मांगे जा रहे हैं। यदि जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल किया जाता है, तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा क्योंकि इस तरह के विवरण पहले जनगणना में शामिल नहीं किए गए थे। सरकार ने यह भी बताया है कि जनगणना के बाद परिसीमन (चुनाव क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण) की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, और इसके बाद महिला आरक्षण लागू होगा। ये दोनों प्रक्रियाएं जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होंगी।
परिसीमन और उसका इतिहास:
2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 84वें संशोधन के माध्यम से परिसीमन को 25 साल तक के लिए स्थगित कर दिया था। तब यह निर्णय लिया गया था कि 2026 के बाद की पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाएगा, जिसका मतलब यह था कि 2031 की जनगणना के बाद परिसीमन संभव होगा। हालांकि, मौजूदा सरकार ने 2027 तक परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने की योजना बनाई है ताकि 2029 के लोकसभा चुनाव परिसीमन और महिला आरक्षण विधेयक के लागू होने के बाद हो सकें।
सरकार की इस तैयारी के चलते भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण का कार्यकाल भी इस साल दिसंबर से बढ़ाकर अगस्त 2026 तक कर दिया गया है। इसके साथ ही, समाज के कई वर्गों से यह मांग उठ रही है कि जनगणना में कास्ट सेंसस को भी शामिल किया जाए।
जातीय जनगणना पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का रुख:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जातिगत जनगणना के विचार का समर्थन करते हुए कहा है कि देश की सही जनसंख्या और जातिगत संरचना का आकलन करना एक सुस्थापित प्रक्रिया है। संघ ने यह स्पष्ट किया है कि इसके संचालन के तरीके पर अभी स्पष्टता नहीं है, लेकिन इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और धर्म की मौजूदा गणना में ओबीसी श्रेणी को शामिल करने के साथ ही सामान्य, एससी-एसटी श्रेणियों में उप-श्रेणियों के आंकड़ों को जोड़ने के सुझाव आए हैं।
दक्षिणी राज्यों की चिंताएं और परिसीमन का प्रभाव:
परिसीमन के दौरान विभिन्न दक्षिणी राज्यों ने अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है। यह चिंता इस वजह से है कि उत्तरी भारत के राज्यों की आबादी अधिक होने से उनके हिस्से में अधिक सीटें आ सकती हैं, जिससे दक्षिणी राज्यों की राजनीतिक भागीदारी पर असर पड़ सकता है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और एनडीए की सहयोगी पार्टी टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने भी जनसंख्या के प्रभाव पर चिंता जताते हुए राज्य के लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
केंद्र सरकार का रुख और समाधान की दिशा:
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को स्पष्ट किया है कि परिसीमन से उत्तर और दक्षिण के बीच विभाजन नहीं होना चाहिए। यह संभावना है कि जनसंख्या और क्षेत्र के आधार पर एक ऐसा फॉर्मूला तैयार किया जाएगा जो संतुलन बनाए रखे। इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श होगा ताकि सहमति बनाई जा सके।
संविधान में आवश्यक संशोधन:
परिसीमन प्रक्रिया को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेदों में कुछ संशोधन आवश्यक होंगे। इनमें अनुच्छेद 81 (जो लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है), अनुच्छेद 170 (विधानसभाओं की संरचना), अनुच्छेद 82, अनुच्छेद 55 (राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया से संबंधित), अनुच्छेद 330 और 332 (क्रमशः लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण से संबंधित) में परिवर्तन शामिल हैं।
इस प्रकार, सरकार का प्रयास है कि जनगणना के साथ परिसीमन और महिला आरक्षण विधेयक जैसे बड़े निर्णयों को जनसंख्या के आधार पर संतुलित तरीके से लागू किया जाए, ताकि देश में समान राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।