
सुपौल: बिहार सरकार की महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजना टिशू कल्चर लैब धीरे धीरे फंड के अभाव में दम तोड़ता जा रहा है। भागलपुर के अलावा सिर्फ सुपौल ही ऐसी जगह है जहां ये लैब स्थापित किया गया है। इसमें उन्नत किस्म के बांस के पौधों को इन प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाता है। लेकिन जो जानकारी निकल कर सामने आ रहा है, उसके मुताबिक मार्च 2023 के फंड मिला ही नहीं है। इसकी वजह से यहां काम करने वाले लोग काम छोड़ कर चले गए हैं, जिसकी वजह से यहां का काम पूरी तरह से ठप्प हो गया है।
2018 के अगस्त महीने में स्थानी. बीएसएस कॉलेज परिसर में सूबे के सबसे बड़े टिशू कल्चर लैब का शुभारंभ तात्कालिन उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के करकमलो से किया गया था, लेकिन अब इसका हाल सभी को दिख ही रहा है। इस लैब को शुरु करने के पीछे सरकार की मंशा थी, प्रयोगशाला में बांस की उन्नत किस्म तैयार कर किसानों तक पहुंचाना। मिली जानकारी के मुताबिक अबतक करीब एक लाख से ज्यादा बांस के पौधे किसानों के बीच वितरित किए जा चुके हैं, लेकिन इस साल मार्च के बाद से ही इस प्रोजेक्ट पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं।
आपको बता दें कि कोसी के इलाके में व्यापक पैमाने पर बांस की खेती होती रही है, जो बांद दूर-दराज के इलाकों में भेजे जाते हैं। इससे किसानों की आमदनी भी अच्छी होती है। कहा जाता है कि जहां बांस की खेती होती है, वही नदी का कटाव भी संभावना भी कम होती है। इन्हीं सब कारणों से सरकार ने बिहार का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट सुपौल में स्थापित किया गया है, जिसकी हालत अब बेहद ही खराब हो गई है। एक तरफ जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( Nitish Kumar) और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) किसानों की आमदनी को लेकर केन्द्र सरकार को घेरते रहते हैं। लेकिन अगर सुपौल के इस लैब की स्थिति को देखें तो इससे साफ पता चलता है कि सूबे के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री किसानों के मुद्दे पर बस राजनीति कर रहे हैं। किसानों की स्थिति से उनका कोई सरोकार नहीं है। अगर सरोकार होता तो शायद इस लैब की स्थित बद से बदतर नहीं होती।