Pawan Singh Politics: भोजपुरी अभिनेता और गायक पवन सिंह भाजपा के टिकट पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा और भाजपा नेताओं से मुलाकात के बाद उनकी सक्रिय राजनीति में वापसी तय मानी जा रही है।
नई दिल्ली: भोजपुरी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता और गायक पवन सिंह एक बार फिर सक्रिय राजनीति में कदम रखने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार, वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर मैदान में उतर सकते हैं। मंगलवार को पवन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और भाजपा नेता विनोद तावड़े से मुलाकात की। बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में विनोद तावड़े ने स्पष्ट किया कि “पवन सिंह भाजपा में थे, हैं और आगे भी रहेंगे। उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा से आशीर्वाद लिया है और आगामी चुनाव में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ सक्रिय भूमिका निभाएंगे।”
पिछली नाराजगी और वापसी
पवन सिंह को पिछले वर्ष भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था, जब उन्होंने लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। इस सीट पर भाजपा के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा भी मैदान में थे। पवन सिंह की स्वतंत्र उम्मीदवारी ने वोटों के बंटवारे का कारण बनी, जिसके चलते भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के उम्मीदवार राजाराम सिंह ने 3,80,581 वोट हासिल कर एक लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। उस चुनाव में पवन सिंह को मिले 2,74,723 वोट तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा को मिले थे 2,53,876 वोट। मतलब दोनों के बीच हार का अंतर 1,05,858 वोटों का था। यह चुनावी समीकरण भाजपा और उसके सहयोगियों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ था।
अब किस सीट से उतरेंगे पवन सिंह?
नई राजनीतिक समझदारी और पवन सिंह व उपेंद्र कुशवाहा के बीच बनी सुलह ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पवन सिंह को किस विधानसभा सीट से चुनावी रण में उतारा जाएगा। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा उन्हें आरा या आसपास की किसी सीट से प्रत्याशी बना सकती है। आरा सीट भाजपा के लिए परंपरागत गढ़ मानी जाती है। यहां वर्ष 2000 से भाजपा के अमरेंद्र प्रताप सिंह लगातार जीत दर्ज करते रहे हैं। हालांकि, 2015 में राजद और जेडीयू की साझेदारी के चलते उन्हें महज 666 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
भोजपुरी फिल्मों से लेकर चुनावी मैदान तक पवन सिंह की सक्रियता ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। भाजपा उन्हें एक प्रभावशाली चेहरा मानकर चुनावी समीकरण साधने की रणनीति बना रही है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि पार्टी उन्हें किस सीट से उम्मीदवार बनाती है और मतदाता उनकी राजनीतिक पारी को कितना स्वीकारते हैं।