क्या पूर्णिया एयरपोर्ट के उद्घाटन का श्रेय वाकई नेताओं की होड़ से तय होगा? कौन करेगा इसका फैसला?

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Purnia Airport Inauguration: पूर्णिया एयरपोर्ट 15 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया। अब नेताओं में श्रेय लेने की होड़ मची है, जबकि असलियत सामूहिक प्रयास और जनता के सहयोग की है।

पूर्णिया की धरती ने 15 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक दिन देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के चौथे एयरपोर्ट का औपचारिक उद्घाटन किया और इसी के साथ कोलकाता और अहमदाबाद के लिए सीधी उड़ान सेवाएं भी शुरू हो गईं। यह उपलब्धि उत्तर बिहार और सीमांचल क्षेत्र के लिए एक नई दिशा की शुरुआत है। वर्षों से उपेक्षित यह इलाका अब सीधे हवाई मानचित्र पर जुड़ चुका है, जिससे व्यापार, रोजगार और पर्यटन के अवसरों की नई संभावनाएं खुलेंगी।

क्रेडिट लेने की लगी होड़

लेकिन जैसे ही रिबन कटा और पहली उड़ान ने उड़ान भरी, एक अलग ही दौड़ शुरू हो गई—श्रेय लेने की होड़। पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने इसे अपना संघर्ष बताया, पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा भी इसे अपने प्रयासों की देन मानते हैं और स्थानीय विधायक अशोक खेमका भी पीछे नहीं हैं। हालांकि श्रेय लेने की रेस में मौजूदा सांसद पप्पू यादव फिलहाल सबसे आगे चल रहे हैं। उद्घाटन के बाद सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर बयानबाजी की झड़ी लग गई—“यह एयरपोर्ट मेरे प्रयास से बना”, “यह मेरे संघर्ष का परिणाम है।”

एयरपोर्ट बनने की टाइमलाइन

हालांकि, सच्चाई इन दावों से कहीं अलग और लंबी है। एयरपोर्ट की कहानी 2015 में शुरू होती है, जब पहली बार इसके निर्माण की घोषणा हुई थी। जून 2022 में बिहार सरकार ने मौजूदा वायुसेना बेस के बगल में 52.5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण पूरा किया। 2023 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) और बिहार सरकार के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए। 2025 की शुरुआत में टर्मिनल निर्माण का अनुबंध मंजूर हुआ और अगस्त 2025 तक इसके चालू होने की उम्मीद जताई गई थी। लेकिन कुछ तकनीकि कारणों से ये संभव नहीं हो पाया और आखिरकार 15 सितंबर से इसे आधिकारिक रुप से शुरु कर दिया गया।

इस लंबे सफर में न सिर्फ राजनेताओं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों, इंजीनियरों, मजदूरों और आम जनता के सहयोग का योगदान रहा है। एयरपोर्ट केवल किसी एक व्यक्ति या एक दल का सपना नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामूहिक आकांक्षा का परिणाम है। क्योंकि अभी अगर देखें तो पूर्णिया के सांसद ने अपनी सोशल मीडिया अकाउंट पर इसका सारा क्रेडिट खुद पर ले लिया है और लगातार उस फोटो को भी शेयर किया है जब वो संसद सत्र के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री से मिले थे। लेकिन सवाल यही उठता है कि वो 2024 में पूर्णिया के सांसद बने लेकिन एयरपोर्ट को मंजूरी 2015 में ही मिल चुकी थी।

पैसा केन्द्र का, मेहनत राज्य सरकार के अधिकारियों की, फैसला भारतीय वायु सेना का तो सवाल यह उठता है कि जब कोई विकास परियोजना पूरी होती है तो उसका श्रेय केवल नेताओं की होड़ तक ही क्यों सीमित हो जाता है? क्या श्रेय का असली हकदार वह राजनीतिक चेहरा है, जो उद्घाटन के समय मंच पर मौजूद था? या वह श्रमिक, जिसने तपती धूप और बरसात में ईंट-गारे से इस सपने को आकार दिया? फैसला जनता को करना है कि मंजूरी केन्द्र की, पैसा केन्द्र का तो बनवाने का श्रेय स्थानीय नेताओं को क्यों?

ये समझना होगा कि पूर्णिया एयरपोर्ट सीमांचल के लिए वरदान है। इसे राजनीतिक ‘क्रेडिट-वार’ में उलझाने के बजाय इस उपलब्धि को पूरे क्षेत्र के सामूहिक प्रयास के रूप में स्वीकार करना ही सही होगा। विकास का श्रेय जनता और व्यवस्था दोनों को मिलना चाहिए, क्योंकि अंततः इसका लाभ जनता को ही मिलने वाला है। नेताओं की होड़ में असली योगदान अक्सर गुमनाम हो जाता है। पूर्णिया एयरपोर्ट इस बात की याद दिलाता है कि असली विकास राजनीति की तकरार से नहीं, बल्कि सामूहिक संकल्प और निरंतर प्रयास से साकार होता है।

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