जेपीसी पर इंडिया गठबंधन में पड़ सकती है फूट, दबाव में कांग्रेस, सहयोगी दलों ने बढ़ाई मुश्किलें

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Rift in INDIA Alliance Over JPC: प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को 30 दिन की हिरासत के बाद पद से हटाने वाले विवादित विधेयकों पर गठित जेपीसी को लेकर इंडिया गठबंधन में मतभेद गहराए। कांग्रेस शामिल होना चाहती है, जबकि सपा, टीएमसी, शिवसेना और राजद बहिष्कार के पक्ष में हैं। DMK ने कांग्रेस को दी राहत।

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित विधेयक—जिनमें यह प्रावधान है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री यदि 30 दिन से अधिक हिरासत में रहते हैं तो उन्हें पद से हटाना अनिवार्य होगा—पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया के भीतर गंभीर मतभेद उभर आए हैं। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) जैसे दलों ने जहां जेपीसी का बहिष्कार करने का स्पष्ट ऐलान किया है, वहीं कांग्रेस समिति में शामिल होने के पक्ष में दिख रही है। लेकिन साथी दलों की आपत्तियों और आह्वान ने कांग्रेस नेतृत्व को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है।

गठबंधन के कई नेताओं का मानना है कि जेपीसी से कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं होगा और इसका हिस्सा बनने से विपक्ष का विरोध कमजोर दिखेगा। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह खींचतान इंडिया गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस के लिए स्थिति और कठिन इसलिए हो गई है क्योंकि उसकी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी राजद भी अब सपा, टीएमसी और शिवसेना की राह पकड़ते हुए जेपीसी का बहिष्कार करने की तैयारी कर रही है। राजद का यह रुख कांग्रेस की रणनीति के बिल्कुल उलट है, जिससे गठबंधन में असहमति और गहरी हो रही है।

हालांकि, कांग्रेस को कुछ राहत दक्षिण भारत से मिली है। डीएमके ने स्पष्ट किया है कि वह जेपीसी में शामिल होगी। डीएमके नेता टीकेएस इलंगोवन ने कहा कि उनकी पार्टी समिति का हिस्सा बनकर इन विधेयकों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराएगी। उन्होंने तर्क दिया कि जेपीसी के मंच का उपयोग करके सरकार पर दबाव बनाना और विरोध को दर्ज कराना जरूरी है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ सांसद ने भी संकेत दिया कि पार्टी जेपीसी में शामिल होने की ओर झुक रही है। उन्होंने कहा, हमारे पास इस बात के ठोस कारण हैं कि समिति में रहना किस तरह उपयोगी हो सकता है। हमारा उद्देश्य है कि हम हर विपक्षी आवाज़ को एकजुट करें और भाजपा के खिलाफ साझा मोर्चा बनाए रखें।”

इस तरह जेपीसी को लेकर इंडिया गठबंधन में गहराता मतभेद चुनावी सियासत पर भी असर डाल सकता है। एक ओर कांग्रेस जेपीसी को रणनीतिक मंच मान रही है, तो दूसरी ओर उसके सहयोगी दल इसे महज़ औपचारिक प्रक्रिया करार दे रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या कांग्रेस अपने सहयोगियों को साथ लेकर कोई साझा रुख तय कर पाती है या फिर गठबंधन के भीतर की यह फूट और गहरी होती जाएगी।

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