विजय रुपाणी (Vijay Rupani) का जीवन एक संघर्षशील नेता की गाथा है जिन्होंने आपातकाल, पाटीदार आंदोलन और राजनीतिक गुटबाज़ी जैसी चुनौतियों के बीच राज्य को स्थिर नेतृत्व दिया।
विजय पाणी का राजनीतिक जीवन एक सच्चे जनसेवक की मिसाल है। गुरुवार 12 जून को हुए एयर इडिया के हादसे में उनका निधन हो गया, जब वे लंदन जा रहे थे अपनी पत्नी और बेटी से मिलने। लेकिन उनके जीवन की कहानी महज एक नेता की नहीं, बल्कि एक कर्मयोगी की है, जिसने हर मोड़ पर देश और समाज के लिए समर्पित भाव से काम किया। बर्मा से गुजरात तक का उनका सफर केवल भौगोलिक नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक परिवर्तन का भी परिचायक था। एक जैन परिवार में जन्म लेकर, रुपाणी ने 16 वर्ष की उम्र में RSS से जुड़कर राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया। आपातकाल के दौरान 11 महीने जेल में बिताना उनकी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
स्थानीय राजनीति से लेकर प्रदेश की सत्ता तक, विजय पाणी ने हर जिम्मेदारी को कुशलता से निभाया। राजकोट म्युनिसिपल कॉरपोरेशन से लेकर मुख्यमंत्री पद तक, उनका राजनीतिक सफर संघर्षों और उपलब्धियों से भरा रहा। जब गुजरात पाटीदार आंदोलन और गुटबाज़ी से जूझ रहा था, तब रुपाणी को राज्य की बागडोर सौंपना पार्टी का साहसी निर्णय था – और उन्होंने उस भरोसे को निभाया। विजय रुपाणी का सबसे बड़ा गुण था, उनका समन्वयकारी नेतृत्व। उन्होंने पार्टी और सरकार के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की, जनआंदोलनों को शांतिपूर्वक संभाला और प्रशासनिक मशीनरी में विश्वास बहाल किया। हालांकि 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं था, लेकिन उनकी रणनीति और मेहनत ने पार्टी को सत्ता में बनाए रखा।
उनका कार्यकाल भले ही 5 वर्षों का रहा, लेकिन उस दौरान उन्होंने जल संसाधन, परिवहन, और रोजगार जैसे अहम विभागों में ठोस कार्य किए। उनका जीवन उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो राजनीति को केवल सत्ता नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम मानते हैं। आज जब हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, तो उनके जीवन से यही शिक्षा मिलती है कि सच्चा नेतृत्व पद में नहीं, बल्कि कर्तव्य के निर्वहन में होता है। विजय रुपाणी चले गए, लेकिन उनके आदर्श, कर्म और समर्पण की गूंज भारतीय राजनीति में लंबे समय तक सुनाई देती रहेगी।