22 अप्रैल को पहलगाम हमले (Pahalgam Attack) के पीछे TRF की संलिप्तता के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में TRF को आतंकी संगठन घोषित कराने की तैयारी शुरू की है। जानिए कैसे लश्कर-ए-तैयबा का यह प्रॉक्सी संगठन वैश्विक प्रतिबंधों के घेरे में आ सकता है।
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले के पीछे जिस आतंकवादी संगठन TRF (द रेजिस्टेंस फ्रंट) का हाथ सामने आया है, अब भारत उस पर अंतरराष्ट्रीय शिकंजा कसने की तैयारी में है। TRF, पाकिस्तान आधारित प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का ही एक छद्म संगठन (प्रॉक्सी) है, जिसे भारत अब वैश्विक स्तर पर आतंकी संगठन घोषित करवाना चाहता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की 1267 प्रतिबंध समिति के समक्ष TRF को आतंकी घोषित कराने हेतु एक विस्तृत प्रस्ताव लाने की योजना पर काम कर चुका है।
भारत ने समिति की निगरानी टीम और अन्य सहयोगी देशों के साथ कूटनीतिक चर्चा तेज कर दी है, और पहलगाम हमले में TRF की भूमिका के पुख्ता सबूत भी तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें जल्द ही यूएन में पेश किया जाएगा। TRF ने इस हमले की जिम्मेदारी खुलेआम ली थी, जिसमें भारतीय सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया था। यह संगठन 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अस्तित्व में आया था। शुरुआत में यह केवल ऑनलाइन प्रचार व भ्रामक नैरेटिव फैलाने के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में इसने ‘तहरीक-ए-मिल्लत इस्लामिया’ और ‘गजनवी हिंद’ जैसे आतंकी गुटों के तत्वों को मिलाकर खुद को एक पूर्ण आतंकी संगठन में बदल लिया।
राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि TRF का मकसद लश्कर-ए-तैयबा को एक नया नाम देकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचाना है, जबकि उसकी कार्यप्रणाली, ट्रेनिंग और फंडिंग पूरी तरह LeT द्वारा ही संचालित होती है। भारत की यह पहल न केवल आतंकवाद के खिलाफ उसकी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का प्रमाण है, बल्कि यह वैश्विक समुदाय को यह भी संदेश देती है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में अब नाम बदलने वाली रणनीति भी काम नहीं आएगी। अगर यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित होता है, तो TRF पर वैश्विक यात्रा प्रतिबंध, संपत्ति जब्ती और हथियारों की खरीद पर रोक जैसे कड़े प्रतिबंध लग सकते हैं।
भारत का ये फैसले से तो ये साफ हो गया है किभारत अब सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, कूटनीतिक मोर्चे पर भी आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने को तैयार है। आने वाले हफ्तों में यह देखना अहम होगा कि वैश्विक समुदाय इस प्रस्ताव को कितना समर्थन देता है?