Ground Report: रामबन में कुदरत का कहर, भूस्खलन और भारी बारिश से 85 घर ढहे, 10 हजार मवेशी मरे, 80% फसलें तबाह

रामबन (Ramban) जिले में भारी बारिश, ओलावृष्टि और भूस्खलन से 80% फसलें बर्बाद हो गई हैं। हजारों मवेशियों की मौत, सैकड़ों घर और दुकानें ध्वस्त। सेना राहत कार्य में जुटी। जानिए पूरी रिपोर्ट।

जम्मू: जम्मू-कश्मीर के रामबन के बागना गांव में कुदरत ने ऐसा क़हर बरपाया है कि जिन्हें देखकर आपका भी दिल दहल उठेगा। यहां कुदरत ने ऐसी तबाही मचाई है, जिससे लोग न केवल अपना घर बल्कि अपना सबकुछ खो चुके हैं। यह सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि हजारों जिंदगियों की बर्बादी की दास्तान है।

बर्बाद फसलें, मलबे में दबे मकान, रोते हुए लोग, बंद पड़ी सड़कें, सेना व राहत टीमें, ट्रांसफार्मर फुंके हुए, टूटी दुकानें। रामबन जिले की बागना पंचायत, जहां पिछले हफ्ते भारी बारिश, ओलावृष्टि और भूस्खलन ने ज़िंदगी थमा दी। 18 से 20 किलोमीटर की परिधि में बर्बादी ही बर्बादी है। यहां 80% से ज्यादा फसलें नष्ट हो गईं, 10 हज़ार से ज्यादा मवेशी मर गए, और 85 घर पूरी तरह ज़मींदोज़ हो चुके हैं।

आपको ये जान कर हैरानी होगी कि जहां कुछ दिन पहले तक गेहूं और सरसों की लहलहाती फसल थी। अब यहां सिर्फ कीचड़, मलबा और सन्नाटा है। रामबन में 28 फीडर बंद हो चुके हैं, 945 ट्रांसफार्मर फुंक चुके हैं। 71 सड़कें और जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पूरी तरह अवरुद्ध हैं। 43 पेयजल योजनाएं ठप हैं, और बिजली-संचार सेवा ठप पड़ी है।

हनीफ अहमद, जिनके दो बेटों को कुदरत के इस कहर ने निगल लिया। उनकी जिंदगी थे, उनके दो बच्चे। लेकिन अब कुछ बचा ही नहीं। बचा है तो वो दर्द, जो अब जिंदगी भर उनके जहन में नासूर बन कर चिपक गया है। अपना दर्द बयां करते हुए वो कहते हैं – बेटे स्कूल से लौट ही रहे थे कि ऊपर से मलबा गिरा। सबकुछ खत्म हो गया। बस एक तस्वीर बची है अब। क्या कहें… अब तो जीने का भी मन नहीं करता…”

सेना के जवान लगातार राहत कार्यों में जुटे हैं। अब तक दर्जनों परिवारों को राहत कैंपों में पहुंचाया गया है। प्रशासन ने 12 टीमें और 26 एंबुलेंस तैनात की हैं, लेकिन रास्ते बंद होने से हर गांव तक मदद नहीं पहुंच पा रही है। इस त्रासदी ने न केवल जान-माल का नुकसान किया है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को वर्षों पीछे धकेल दिया है। प्रभावित लोग सरकार से विशेष आर्थिक सहायता पैकेज की मांग कर रहे हैं ताकि पुनर्वास कार्य शीघ्र शुरू हो सके।

यह त्रासदी केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, ये उन चेहरों की पुकार है जिन्होंने अपना सबकुछ खो दिया है। सरकार से विशेष राहत पैकेज की मांग ज़ोर पकड़ रही है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इन जख्मों को भरने में कोई योजना कारगर हो पाएगी?

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