नई दिल्ली: महाराष्ट्र से शुरू हुआ ‘औरंगजेब विवाद’ अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। मुगल सम्राट औरंगजेब (Aurangzeb) का जीवन, उनकी धार्मिक नीतियां और उनकी कब्र को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आते रहे हैं। खासकर, उनकी कब्र की सादगी और उस पर लगे तुलसी के पौधे को लेकर कई तरह की चर्चाएं होती रही हैं। आखिर क्या है इस कब्र की कहानी? क्यों इसे औरंगजेब की मेहनत से कमाए गए पैसों से बनाया गया और उनकी वसीयत में क्या कहा गया था? आइए जानते हैं इस खास रिपोर्ट में।
औरंगजेब और औरंगाबाद का जुड़ाव
मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने जीवन के 37 वर्ष औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर) में बिताए थे। यह शहर उनके दिल के बेहद करीब था। यही वजह थी कि उन्होंने अपनी पत्नी के लिए यहां ‘बीबी का मकबरा’ बनवाया, जिसे ‘दक्कन का ताज’ भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा में भी यह कहा था कि उनकी मौत कहीं भी हो, लेकिन उन्हें औरंगाबाद में ही दफनाया जाए।
टोपियां सिलकर बनाई थी अपनी कब्र
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने अपने जीवन में बेहद सादगी भरा जीवन जिया। उनका मानना था कि शाही खजाने से अपने व्यक्तिगत खर्चों के लिए धन लेना उचित नहीं है। यही कारण था कि उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद मेहनत की। वह अपने हाथों से टोपियां सिलते थे और उनसे हुई कमाई को अपनी कब्र के निर्माण के लिए रखा था। जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनकी वसीयत के अनुसार, उनके बेटे ने उन्हीं पैसों से एक साधारण मकबरा बनवाया।
कब्र पर तुलसी का पौधा क्यों?
औरंगजेब की वसीयत में स्पष्ट रूप से लिखा था कि उनकी कब्र बेहद साधारण होनी चाहिए। उन्होंने आदेश दिया था कि उनकी कब्र पर केवल ‘सब्जे का छोटा पौधा’ लगाया जाए और इस पर कोई छत न हो। इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब की यह इच्छा उनकी सादगी और आध्यात्मिक झुकाव को दर्शाती है। हालांकि, वर्तमान में उनकी कब्र पर तुलसी का पौधा लगा हुआ देखा गया है, जिससे कई तरह की चर्चाएं उठने लगी हैं।
कब्र की मौजूदा स्थिति और विवाद
महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित औरंगजेब की कब्र एक साधारण मिट्टी की कब्र है, जो केवल एक सफेद चादर से ढकी रहती है। इसके पास एक पत्थर लगा हुआ है, जिस पर उनका पूरा नाम ‘अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर’ लिखा हुआ है। हाल के वर्षों में, इस कब्र को लेकर कई बार राजनीतिक और धार्मिक विवाद उठे हैं। कई संगठनों ने इसे हटाने की मांग की है, जबकि कुछ लोग इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने की वकालत कर रहे हैं।