13 वर्षों में दोगुनी हुई वक्फ की जमीन, आखिर क्यों पड़ी कानून में संशोधन की जरुरत?

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नई दिल्ली। भारत में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर एक बार फिर से विवाद गहरा गया है। देश में एक सेंट्रल और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं, जिनकी संपत्तियों की संख्या और विस्तार तेजी से बढ़ रहा है। 2009 तक देश में लगभग 3 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियां थीं, जो करीब 4 लाख एकड़ भूमि में फैली हुई थीं। लेकिन अब, महज 13 वर्षों में, यह संख्या बढ़कर 8,72,292 हो गई है और इन संपत्तियों का क्षेत्रफल 8 लाख एकड़ तक पहुंच गया है।

विवादों के घेरे में वक्फ बोर्ड

वक्फ बोर्ड पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि यह किसी भू-माफिया की तरह काम कर रहा है और सरकारी व निजी संपत्तियों को हड़पने में लिप्त है। खासकर, निजी भूमि, सरकारी जमीन, मंदिरों और गुरुद्वारों की संपत्तियों को अपने अधिकार में लेने को लेकर कई विवाद सामने आए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वक्फ अधिनियम में समय-समय पर हुए संशोधनों के कारण वक्फ बोर्ड को अत्यधिक शक्तियां प्राप्त हो गई हैं। दुनिया के किसी भी अन्य देश, यहां तक कि मुस्लिम बहुल देशों जैसे सऊदी अरब और ओमान में भी ऐसा कानून नहीं है, जहां वक्फ बोर्ड को इतनी स्वतंत्रता और अधिकार मिले हों।

सरकारें भी बेबस?

एक बार कोई संपत्ति वक्फ के अधीन आ जाए तो उसे वापस पाना लगभग असंभव हो जाता है। इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों की स्थिति भी बेबस नजर आती है, क्योंकि वे इस संपत्ति पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं रख सकतीं। अदालतों के फैसले भी कई बार इस मसले में निष्प्रभावी साबित हुए हैं।

200 करोड़ का भी राजस्व नहीं, पारदर्शिता पर सवाल

भारत में वक्फ संपत्तियों का क्षेत्रफल किसी भी अन्य देश से अधिक है, लेकिन इसके बावजूद इससे मिलने वाला वार्षिक राजस्व 200 करोड़ रुपये तक भी नहीं पहुंचता। इस मुद्दे पर पारदर्शिता की भी कमी बताई जाती है। सच्चर कमेटी ने भी इस बात को उजागर किया था कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन अधिक पारदर्शी होना चाहिए।

वक्फ संपत्तियों पर सिर्फ मुस्लिमों का अधिकार?

विवाद का एक बड़ा कारण यह भी है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का उपयोग केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जा सकता है, जिससे अन्य समुदायों में असंतोष है। कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इस कानून में बदलाव की मांग की है ताकि सभी समुदायों को समान अधिकार मिल सकें।

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