वायु प्रदूषण: सिनेमा और समाज का एक अनदेखा पहलू, जिसपर शायद ही होती चर्चा

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2016 में एक फ़िल्म आई, जिसका नाम था पिंक (PINK) । यह फ़िल्म न केवल अपनी कहानी और सामाजिक संदेश के लिए चर्चित रही, बल्कि बॉक्स ऑफ़िस पर भी सफल साबित हुई। फ़िल्म के एक दृश्य में, अमिताभ बच्चन का किरदार सर्दियों की सुबह दिल्ली की धुंध भरी सड़कों पर मास्क पहनकर टहलते नजर आ रहे हैं। इस दृश्य ने दिल्ली के वायु प्रदूषण की गंभीरता को उजागर किया। लेकिन इस फिल्म में इस सीन के कुछ खास मायने नहीं थे।

वायु प्रदूषण: सिनेमा में गायब विषय

भारत में सर्दियों के मौसम में दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य इलाक़े ज़हरीली हवा की चपेट में रहते हैं। हालांकि, यह विषय राजनीतिक, सामाजिक और क़ानूनी चर्चाओं में प्रमुख रहता है, लेकिन भारतीय सिनेमा में इसे शायद ही कभी गंभीरता से लिया गया हो। पिंक जैसी मुख्यधारा की फ़िल्में वायु प्रदूषण के मुद्दे को पर्दे पर लाने में अपवाद रही हैं। आमतौर पर प्रदूषण जैसे मुद्दे फ़िल्मों में केवल एक बैकड्रॉप के तौर पर दिखाए जाते हैं, कहानी का अहम हिस्सा नहीं बनते।

प्रदूषण और जनजीवन पर प्रभाव

वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसका प्रभाव लाखों लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, प्रदूषण के कारण हर साल लाखों लोग श्वसन और हृदय रोगों के शिकार होते हैं। दिल्ली जैसे शहरों में पीएम2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है।

सिद्धार्थ सिंह की किताब द ग्रेट स्मॉग ऑफ इंडिया इस विषय पर गहराई से प्रकाश डालती है। सिद्धार्थ का मानना है कि वायु प्रदूषण को आम लोगों के बीच समझाने का काम अभी भी विशेषज्ञों और वैज्ञानिक समुदाय तक सीमित है। उनका कहना है, “जब आप पीएम2.5, नाइट्रोजन ऑक्साइड, या सल्फर डाइऑक्साइड जैसे शब्दों का ज़िक्र करते हैं, तो आम आदमी के लिए उनका कोई ठोस अर्थ नहीं होता।”

बॉलीवुड का प्रदूषण पर मौन

भारतीय मनोरंजन उद्योग में प्राकृतिक आपदाओं और सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में बनती रही हैं। 2013 की उत्तराखंड आपदा, 2018 की केरल बाढ़, और 2005 की मुंबई की विनाशकारी बाढ़ पर आधारित फ़िल्में इसका उदाहरण हैं। लेकिन वायु प्रदूषण जैसा विषय, जो हर साल लाखों जिंदगियों को प्रभावित करता है, अब तक बड़े पर्दे पर अपनी जगह नहीं बना पाया है।

सिनेमा का समाज पर प्रभाव

सिनेमा समाज का दर्पण होता है और यह जटिल मुद्दों को सरल और प्रभावी तरीके से पेश करने का माध्यम बन सकता है। यदि बॉलीवुड वायु प्रदूषण जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे, तो यह न केवल जागरूकता फैलाने में मदद करेगा, बल्कि लोगों को इसके समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित भी कर सकता है।

प्रदूषण पर फ़िल्में: ज़रूरत और संभावनाएं

प्रदूषण से जुड़े विषय पर फ़िल्में न केवल एक मनोरंजन माध्यम हो सकती हैं, बल्कि इसके ज़रिये पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, फ़िल्मों में यह दिखाया जा सकता है कि प्रदूषण स्वास्थ्य, आर्थिक विकास और सामाजिक ताने-बाने को कैसे प्रभावित करता है। पिंक जैसी फ़िल्मों से यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में और अधिक फ़िल्में वायु प्रदूषण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को पर्दे पर लाएंगी। सिनेमा, साहित्य और कला को प्रदूषण जैसे गंभीर विषयों पर बोलने की ज़रूरत है, ताकि यह विषय आम लोगों की सोच और बातचीत का हिस्सा बन सके

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