
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में महाविकास आघाड़ी (MVA) के घटक दलों – कांग्रेस (Congress), शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार गुट) को करारी हार का सामना करना पड़ा। इनमें सबसे खराब प्रदर्शन कांग्रेस का रहा, जिसने अपने इतिहास के सबसे खराब दौर का सामना किया। महाराष्ट्र की राजनीतिक राजधानी मुंबई (Mumbai) और राज्य के अन्य हिस्सों में कांग्रेस का प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा। यह हार पार्टी के लिए केवल वर्तमान का संकट नहीं है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का संकेत भी है।
मुंबई में कांग्रेस का प्रदर्शन: शर्मनाक आंकड़े
मुंबई, जिसे कांग्रेस की स्थापना का गढ़ माना जाता है, में पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। 36 सीटों में से कांग्रेस केवल 3 सीटें जीत सकी। वहीं, पूरे महाराष्ट्र में कुल 288 सीटों में से कांग्रेस के खाते में केवल 15 सीटें आईं। यह आंकड़े पार्टी के कमजोर आधार और नेतृत्व संकट को दर्शाते हैं। विधानसभा में कांग्रेस ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से 75 सीटों पर बीजेपी से सीधी टक्कर हुई, लेकिन इनमें से 69 सीटें कांग्रेस हार गई।
बड़े नेताओं की हार से कांग्रेस को झटका
चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की हार ने पार्टी की स्थिति को और खराब किया।
- पृथ्वीराज चव्हाण: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री कराड़ साउथ से लगभग 40,000 वोटों से हार गए।
- बालासाहेब थोरात: पूर्व कांग्रेस विधायक दल के नेता संगमनेर सीट से 10,000 वोटों से पराजित हुए।
- नसीम खान: चांदीवली से 20,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
इन दिग्गज नेताओं की हार न केवल कांग्रेस के वोट बैंक में गिरावट को दर्शाती है, बल्कि पार्टी के प्रति जनता के अविश्वास को भी उजागर करती है।
पार्टी के भीतर कलह और नेतृत्व पर सवाल
चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के अंदर असंतोष और कलह बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं।
- पृथ्वीराज चव्हाण ने मतगणना के दौरान ही पार्टी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा कि हार का एक कारण “खराब नेतृत्व” भी हो सकता है।
- भाई जगताप, मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, ने टीवी कार्यक्रम में हार के लिए स्थानीय नेताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि नेताओं का ध्यान कार्यकर्ताओं से अधिक अपने व्यक्तिगत हितों पर रहा।
सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन में भी पार्टी ने लापरवाही दिखाई। जगताप के अनुसार, पार्टी नेतृत्व ने इन मामलों को गंभीरता से नहीं लिया।
राहुल गांधी का प्रभाव: नकारात्मक या अप्रभावी?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का चुनाव प्रचार भी पार्टी के लिए मददगार साबित नहीं हुआ। उन्होंने नंदुरबार, नागपुर ईस्ट, गोंदिया, नांदेड़ नॉर्थ और चिमूर जैसी सीटों पर प्रचार किया, लेकिन इनमें से कोई भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी। राहुल गांधी की रैलियों के बावजूद पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी की जीत: सीधी टक्कर में कांग्रेस को हराया
इस चुनाव में 75 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी। इनमें से कांग्रेस केवल 6 सीटें ही जीत सकी, जबकि बाकी 69 सीटों पर बीजेपी ने भारी अंतर से जीत दर्ज की। बीजेपी ने न केवल अपने संगठनात्मक ढांचे का इस्तेमाल किया, बल्कि कांग्रेस की कमजोरियों का भरपूर लाभ उठाया।
कांग्रेस के लिए आगे की राह
महाराष्ट्र चुनावों में इस करारी हार ने कांग्रेस के लिए कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
- नेतृत्व संकट: पार्टी को अपने नेतृत्व को मजबूत करने की आवश्यकता है।
- संगठनात्मक सुधार: कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच सामंजस्य बढ़ाने की जरूरत है।
- स्थानीय स्तर पर ध्यान: स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देकर मतदाताओं का विश्वास जीतना होगा।
- युवाओं को मौका: पार्टी को नई सोच और ऊर्जा लाने के लिए युवाओं को नेतृत्व में शामिल करना होगा।
महाराष्ट्र में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार न केवल पार्टी के कमजोर संगठन और नेतृत्व का परिणाम है, बल्कि इसे देश भर में पार्टी की गिरती साख का भी संकेत माना जा सकता है। अगर कांग्रेस इस हार से सबक लेकर अपने ढांचे और रणनीतियों में बदलाव नहीं करती, तो आने वाले चुनावों में भी उसे इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।