
When Gayatri Devi and Vijayaraje Scindia Were Jailed in Tihar
50 Years of Emergency: 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल के 50 साल पूरे हो गए हैं। जानिए कैसे जयपुर की महारानी गायत्री देवी और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को जेल भेजा गया और उन्होंने कैद के दौरान क्या झेला।
25 जून 1975 – भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह तारीख एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की, जिसने संविधान, नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को एक झटके में निलंबित कर दिया। 21 महीनों तक चले इस दौर में हजारों राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया, समाचार पत्रों की सेंसरशिप की गई और नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए। आज, जब इस ऐतिहासिक घटना की 50वीं वर्षगांठ है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय अध्याय” करार दिया और उस दौर में संघर्ष करने वालों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर एक बार फिर देश उन अनगिनत कहानियों को याद कर रहा है जो इस दमनकारी कालखंड में जन्मीं।
जब दो महारानियां बनीं कैदी
आपातकाल के दौरान जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें सिर्फ राजनेता और कार्यकर्ता ही नहीं थे, बल्कि भारत की दो प्रमुख शाही हस्तियां – जयपुर की महारानी गायत्री देवी और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया – भी शामिल थीं। गायत्री देवी, जो स्वतंत्र पार्टी की ओर से लोकसभा सांसद थीं, 30 जुलाई 1975 को मुंबई से इलाज के बाद दिल्ली लौटते ही विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर ली गईं। उनके पुत्र भवानी सिंह को भी साथ ही पकड़ा गया। उन्हें सीधे दिल्ली की तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहीं, 3 सितंबर को ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को भी गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजा गया।
जेल में अलग-अलग कोठरियों की मांग
जब दोनों महारानियों को तिहाड़ में लाया गया तो पहले उन्हें एक ही कोठरी में रखने की योजना बनी, लेकिन गायत्री देवी ने इसका विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी जीवनशैली और आदतें भिन्न हैं, इसलिए उन्हें अलग रखा जाए। जेल प्रशासन ने यह मांग मान ली और दोनों को अलग-अलग कोठरियों में रखा गया। गायत्री देवी को किताबें, पत्रिकाएं और रेडियो जैसी कुछ सुविधाएं मिल गई थीं, जबकि राजमाता विजयाराजे ने बाद में अपनी आत्मकथा “प्रिंसेस” में जेल की बदहाली का वर्णन किया – कैसे वहां खाने के समय मक्खियां परेशान करती थीं, और रात में मच्छरों से नींद हराम हो जाती थी।
राजनीति से संन्यास का वादा और रिहाई
गायत्री देवी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखकर राजनीति से संन्यास लेने और सरकार के कार्यक्रमों को समर्थन देने का आश्वासन दिया। इसके बाद उन्हें 11 जनवरी 1976 को रिहा कर दिया गया। उन्होंने कुल 156 दिन जेल में बिताए थे। राजमाता विजयाराजे सिंधिया को जेल में बीमार पड़ने पर एम्स में भर्ती कराया गया, जहां से बाद में उन्हें पेरोल पर छोड़ा गया। जब वे रिहा हुईं तो उनकी तीनों बेटियां उन्हें लेने जेल के बाहर इंतज़ार कर रही थीं।
आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और लोकतंत्र की पुनः स्थापना
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में कहा कि आपातकाल के खिलाफ लड़ने वाले लोग देश के हर कोने और हर विचारधारा से थे। सभी ने मिलकर लोकतंत्र की रक्षा और स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्शों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। इसी सामूहिक संघर्ष का परिणाम था कि देश में फिर से चुनाव कराए गए और तत्कालीन कांग्रेस सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा।
गौरतलब है कि आपातकाल केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर एक आघात था। यह याद दिलाता है कि सत्ता के केंद्र में बैठे लोगों की जवाबदेही और नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा ही लोकतंत्र की असली पहचान है। 50 साल बाद, यह समय है उस संघर्ष और बलिदान को याद करने का, जिसने देश को फिर से संविधान और लोकतंत्र की राह पर लौटाया।